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________________ $ नास्तिक-दर्शन ३७१ कालीन । प्राचीन संस्करण का लेखक जिनसेन ( ७८४ ई० ) हैं और दूसरे के लेखक १५वीं शताब्दी ई० के सकलकीर्ति और उसके शिष्य जिनदास हैं । (५) जिनसेन (हवीं शताब्दी ई० ) कृत आदिपुराण (६) ई० ) कृत उत्तरपुराण । यह आदिपुराण का ही संलग्नरूप है । ( ६६० ई० ) कृत पद्मपुराण और (८) शुभचन्द्र ( १५५१ ई० पुराण | गुणभद्र (८६८ ( ७ ) रविषेण ) कृत पाण्डव अहिंसा- सिद्धान्त के अपनाने से ही जैन धर्म का विशेष प्रचार हुआ । यह मत धर्म के नैतिक सिद्धान्तों पर जितना बल देता है, उतना विवेचनात्मक विषयों पर नहीं । बौद्धों की अपेक्षा जैनों ने संस्कृत साहित्य को अधिक देन दी है । जैनों के काव्य सरल और सुन्दर हैं । उन्होंने प्राकृत भाषा के साहित्य के विकास में भी बहुत योग दिया है ।
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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