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________________ ३७० संस्कृत साहित्य का इतिहास कुमुदचन्द्रोदय । हेमचन्द्र (१०८८-११७२ ई० ) ने ये ग्रन्थ लिखे हैं--(2) प्रमाणमीमांसा तथा उसकी स्वरचित टीका और (२) वीतरागस्तुति (अत्की स्तुति ) । हेमचन्द्र के समकालीन देवसूरि ने प्रमाणनयतत्त्वलोकालंकार नाम का ग्रन्थ लिखा है और इस पर स्वयं स्वद्वादरत्नाकर नाम की टीका लिखी है । दर्शनशुद्धि और प्रमेयरत्नकोश चन्द्रप्रभा (११०० ई०) की चना माने जाते हैं । हरिभद्रसूरि १२वीं शताब्दी ई० का प्रसिद्ध विद्वान था। उसने ये ग्रन्थ लिखे हैं- (१)षड्दर्शनसमुच्चय, (२) न्यायावतारविति, (३) योगबिन्दु और (४) धर्मबिन्दु आदि । जैन-परम्परा का कथन है कि उसने १४०० ग्रन्थ लिखे हैं । मल्लिषेणसूरि ने १२६२ ई० में हेमचन्द्र की वीतरागस्तुति की टीका स्याद्वादमंजरी नामक ग्रन्थ में की है। इसमें उसने स्वाद्वाद की विधिपूर्वक व्याख्या की है । राजशेखरसूरि ( १३४८ ई० ) ने बहुत से ग्रन्थ लिखे हैं। उनमें से ये दो ग्रन्थ मुख्य हैं-(१) स्यादवादकारिका और (२) श्रीधर की न्यायकन्दली की टोका पंजिका । गुणरत्न ने १५वीं शताब्दी ई० के प्रारम्भ में हरिभद्र के षड्दर्शनसमच्चय की टीका की है । यशोविजयगणि (१६०८-१६८८ ई०) ने १०० से अधिक ग्रन्थ लिखे हैं। उनमें से प्रसिद्ध ये हैं- (१) न्यायप्रदीप, (२) तर्कभाषा, (३) न्यायरहस्य, (४) न्यायामृततरंगिणी और (५) न्यायखण्डखाद्य । हरिभद्रसूरि के योगबिन्दु तथा धर्मबिन्दु में और सकलकीति (१४६४ ई०) के प्रश्नोत्तरोपासकाचार में साधारण तथा संन्यासी दोनों प्रकार के जैनों के कर्तव्यों का वर्णन है । सकलकोति ने तत्त्वार्थसारदीपिका नामक ग्रन्थ भी लिखा है । इसमें उसने दिगम्बर जैन मत पर जितने भी ग्रन्थ हैं, उनका पूरा सारभाग दिया है। निम्नलिखित ग्रन्थों में जीवन चरित तथा परम्परागत बातों का वर्णन है(१) सिद्धर्षि (६०६ ई०) कृत उपमितिभावप्रपंचकथा, (२) अमितगति (१००० ई०) कृत धर्मपरीक्षा (३) हेमचन्द्र ( १०८८-११७२) कृत परिशिष्टपर्व और स्थविरावलीचरित, (४) जैन दृष्टिकोण से महाभारत की कथा पर हरिवंशपुराण । इसके दो संस्करण हैं, एक प्राचीन और दूसर' पर
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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