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________________ उपवेद ३४३ कफ, वात और पित्त का भारतीय सिद्धान्त यूनानियों के त्रिदोष-सम्बन्धी सिद्धान्त से भिन्न है। कामशास्त्र आयुर्वेद के वाजीकरण अध्याय में कामशास्त्र का भी संग्रह किया गया है । ऐसा करने का प्रयोजन यह दिखाना है कि जीवन में प्रेम ही लक्ष्य नहीं है और यह कि ऐन्द्रिक सुखों को प्रत्यासक्ति मनुष्य को पूर्ण विनाश की योर ले जाती है। जिससे मनुष्य स्वस्थ नहीं होता। अत: इस शास्त्र का उद्देश्य विलासी जीवन के अनुसार चलने के कारण होने वाले खतरों के विरुद्ध कामीजनों को प्रोत्साहित करना है । इस विषय पर सबसे प्राचीन ग्रन्थ वात्स्यायन मल्लनाग नामक वैद्य का कामसूत्र ग्रन्थ है । इसमें काम के विभिन्न रूपों का बहुत निःसंकोच वर्णन किया गया है । इसमें दिखाया गया है कि विवाह के द्वारा ही सुख को प्राप्ति की जा सकती है। काम का उसी प्रकार व्यवहार करना चाहिए, जिससे वह धर्म और अर्थ के महत्त्व को कम न कर सके । इसका समय द्वितीय शताब्दी ई० माना जाता है । इसमें सात अध्याय हैं । वात्स्यायन ने इस विषय के अन्य प्राचीन लेखकों में बाभ्रव्य, चारायण और गोनर्दीय आदि का नामोल्लेख किया है। इनमें से कुछ अन्य विषयों के भी आचार्य माने जाते हैं। इनका नाम कौटिल्य के अर्थशास्त्र और पतंजलि के महाभाष्य में भी आता है। वात्स्यायन ने दक का नामोल्लेख किया है । उसने कामसूत्र लिखा है । वह नष्ट हो गया है । वात्स्यायन के कामसूत्र पर यशोधर ( १२४३-१२६१ ई० ) ने जयमङ्गल नाम की टीका लिखी है। इस विषय पर अन्य ग्रन्थ ये हैं-(१) ज्योतिरीश्वर का पंचसायक । इसका समय ११वीं शताब्दी ई० के बाद का है । (२) कोक्कन का रतिरहस्य । यह १२०० ई० से पू० लिखा गया था । (३) जयदेव की रतिमंजरी । इसका समय अनिश्चित है । (४) विजयनगर के राजा इम्मदि प्रौढदेवराय ( १४२२-१४४८ ई० ) की रतिरत्नप्रदीपिका । (५) कल्याणमल्ल का
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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