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________________ संस्कृत साहित्य का इतिहास विशेष महत्त्व दिया गया, उसका परिणाम यह हा कि पारे के विषय में एक पृथक् शाखा प्रचलित हो गई जिसका नाम रसेश्वरसिद्धान्त रक्खा गया । इसका सर्वदर्शनसंग्रह में वर्णन हुग्रा है इस शाखा के अधिष्ठातृदेवता शिव और पार्वती हैं। पशुओं वृक्षों आदि के रोगों को दूर करने के लिए भी वैद्यक के ग्रन्थ लिखे गये थे। सुरपाल ने वृक्षायुर्वेद में वृक्षों के रोगों का इलाज बताया है । नारायण ने मातंगलीला में हाथियों के रोगों का वर्णन किया है । अश्वचिकित्सा पर ये ग्रन्थ हैं--गुण का अश्वायुर्वेद, जयदत्त और दीपंकर का अश्ववैद्यक, वर्धमान की योगमंजरी, नकुल की अश्वचिकित्सा, धारा के राजा भोज का शालिहोत्र और सुखानन्द का अश्वशास्त्र। वैद्यक विषय पर कोशग्रन्थ भी हैं। उनके नाम हैं-धन्वन्तरिनिघण्टु ( समय अज्ञात ), सुरेश्वर ( १०७५ ई० ) का शब्दप्रदीप, नरहरि ( १२३५ ई० ) का राजनिघण्टु, मदनपाल ( १३७४ ई० ) का मदनविनोदनिघण्टु और एक अज्ञात लेखक का पथ्यापथ्यनिघण्टु । पाश्चात्य विद्वानों ने यह प्रयत्न किया है कि भारतीय आयुर्वेद का उद्भव यूनानी अायुर्वेद से हुआ है। किन्तु यह मत व्यर्थ ही है । बहुत से ऐसे दृष्टान्त हैं जिनसे यह स्पष्ट होता है कि भारतीय आयुर्वेद-पद्धति ने अरबनिवासियों, फारसनिवासियों तथा इन दोनों के माध्यम से यूनानियों को प्रभावित किया। जब सिकन्दर ( ३२३ ई० पू० ) ने भारत पर अाक्रमण किया तो पंजाब में उसके आदमी सर्प-दंश से पीड़ित हो गए । उनको चंगा करने के लिए अपने चिकित्सकों को असमर्थ पाकर उसने भारतीय वैद्यों की सहायता ली। उसने उनकी चिकित्सा की प्रशंसा की। उसके मन में कुछ लालच आई और वह अपने साथ भारत के कुछ प्रमुख वैद्यों को ले गया। उनकी सेवाओं ने यूनानियों की सहायता अवश्य की होगी जिससे उन्होंने अपनी आयुर्वेद-पद्धति में सुधार किया । इसके अतिरिक्त
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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