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________________ कालिदास के परवर्ती नाटककार २४६ किया है कि रानी वासवदत्ता के सामने एक नाटक खेला जाता है और उसमें उदयन और वासवदत्ता का विवाह दिखाया जाता है। प्रारण्यिका वासवदत्ता का अभिनय करती है और उदयन का अभिनय प्रारण्यिका का एक मित्र करता है । इस प्रकार प्रेमाख्यान विकास को प्राप्त होता है। उदयन प्रारण्यिका को साँप के काटने से बचाता है । इस नाटक पर शाकुन्तल और मालविकाग्निमित्र का प्रभाव दिखाई पड़ता है । नागानन्द नाटक में पाँच अङ्क हैं । इसमें विद्याधरों के राजकुमार जीमूतवाहन के प्रात्म-बलिदान का वर्णन है। गरुड़ के भोजन के रूप में एक साँप शंखचड़ की बारी थी। जीमूतवाहन ने उसके स्थान पर अपने आप को गरुड़ के लिए आहाररूप में भेंट किया । राजकुमार के उच्च व्यवहार को जानकर गरुड़ को प्रायश्चित्त हुआ और उसने अब तक जितने साँप मारे थे, उन सभी को जीवित कर दिया और बौद्ध विचारधारा के अनुसार उसने प्रतिज्ञा की कि वह आगे किसी को भी नहीं मारेगा । जीमूतवाहन का रंगमंच पर प्राणान्त हो गया था। उसको देवी गौरी ने पुनर्जीवित किया और विद्याधरों का राजा बना दिया। इसमें साथ ही राजकुमार का एक सिद्ध राजकुमारी मलयवती के साथ प्रेम का वर्णन है । यह नाटक एक बौद्ध जातक के आधार पर बना है । उसको लेखक ने हिन्दू रूप दे दिया है । लेखक ने हिन्दूधर्म और बौद्धधर्म दोनों के प्रति सहिष्णुता के भाव को प्रकट करने के लिए सम्भवतः ऐसा किया है । हर्ष कथानक के संघटन में पट नहीं है । उसने दूसरे नाटककारों से उधार लेने में पर्याप्त परिश्रम किया है और उनको अपनी आवश्यकता के अनुसार उसने परिवर्तित कर लिया है। इनमें चरित्र-चित्रण अच्छा नहीं हुआ है । स्त्री-पात्रों का चित्रण और घटिया हुआ है । उसके पात्र राजा, नायक, रानी आदि नामों से उल्लेख किए गए हैं। इसकी शैली वैदर्भी है । रत्नावली और प्रियदर्शिका में शृङ्गार रस मुख्य है और नागानन्द में शान्तरस प्रधान है । रत्नावली और प्रियदर्शिका में रत्नावली रस-परिपाक की दृष्टि से अधिक अच्छी है । नागानन्द नाटक के रूप में बहुत उच्च कोटि का नहीं है।
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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