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________________ २४४ संस्कृत साहित्य का इतिहास रक्खा था । वेश्या को प्रात्मा ने उस शरीर में प्रवेश किया और वह सजीव हो गया तथा प्रेम-सम्बन्धी विषयों पर उपदेश देने लगा। लेखक को दार्शनिक सिद्धान्तों का अच्छा ज्ञान था, यह ग्रन्थ के पढ़ने से ज्ञात होता है। __ वीणावासवदत्तम् नाम का चार अङ्कों का एक अपूर्ण नाटक प्राप्त होता है । इसमें वर्णन किया गया है कि किस प्रकार प्रद्योत के द्वारा उदयन को बन्दी बनाए जाने से वासवदत्ता को यह अवकाश मिला कि वह उदयन से वीणा बजाना सीख सके । इस नाटक का लेखक अज्ञात है। इसको शैली के आधार पर इसको ईसवीय सन् की प्रारम्भिक शताब्दी में रखना उचित है । एक अज्ञात लेखक का एक प्रहसन दामक है। इसमें वर्णन किया गया है कि किस प्रकार कर्ण ने परशुराम से अस्त्रशिक्षा प्राप्त की । इस नाटक में कर्ण का एक मित्र दामक विशेष भाग लेता है। भास के नाटकों में जो विशेषता प्राप्त होती है, वह इसमें भी प्राप्त होती है । इसका समय ईसा की प्रारम्भिक शताब्दियों में समझना चाहिए । दिङनाग ने कुन्दमाला नाटक लिखा है। इसका दूसरा नाम धीरनाग भी है। इसमें ६ अङ्क हैं। इसका आधार रामायण के उत्तरकाण्ड की कथा है । इसका लेखक बौद्ध नैयायिक दिङ नाग से भिन्न व्यक्ति है, क्योंकि वह हिन्दू-विचार वाला नाटक न लिखता । भाषा की सरलता से ज्ञात होता है कि वह २०० ई० के लगभग हुआ होगा । उसका प्रभाव भवभूति ( ७०० ई० ) के उत्तररामचरित पर भी पड़ा है । उसकी सरल शैली की तुलना जब भवभूति की क्लिष्ट और कठोर शैली से की जाती है, तो ज्ञात होता है कि वह. भवभूति से पूर्ववर्ती है । इसके नाटक पर भास और कालिदास का प्रभाव पड़ा है । यह ज्ञात नहीं है कि वह कालिदास का समकालीन है या बाद का । कुछ हस्तलिखित प्रतियों में उसका नाम धीरनाग दिया गया है । यह नाटक सुखान्त है । इसमें अन्त में राम के सम्मुख माता पृथ्वी के द्वारा सीता की पवित्रता सिद्ध की जाती है और कुश तथा लव क्रमशः राजा और
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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