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________________ कालिदास के परवर्ती नाटककार २४३ ग्रन्थ उभयाभिसारिका लिखा है । इसमें कुबेरदत्त और नारायणदत्त का जीवन वणित है । वररुचि का पूर्ण परिचय अज्ञात है । इसमें न्याय और सांख्य सिद्धान्तों का उल्लेख है और नृत्यकला का भी वर्णन है । भास के नाटकों में जो विशेषताएँ प्राप्त होती हैं, वे इसमें भी दृष्टिगोचर होती हैं। ईश्वरदत्त ने एक भाण-ग्रन्थ धूर्तविटसंवाद लिखा है । इसे वेश्या-कार्यवर्णन को एक पुस्तिका कह सकते हैं । इसमें नान्दी नहीं है। इसमें कुसुमपुर का उल्लेख है। इसमें दत्तक को शृङ्गार का आचार्य बताया गया है। इसमें कामसूत्र (२५० ई०) का उल्लेख नहीं है, अतः इसे प्रथम या द्वितीय शताब्दी ई० की रचना मान सकते हैं। इसके लेखक के विषय में कुछ भी ज्ञात नहीं है। बोधायन ने एक प्रहसन ग्रन्थ भगवदज्जुक लिखा है। इसके लेखक के विषय में कुछ भी ज्ञात नहीं है। इसमें रूपक के दस भेदों के जो नाम दिए गए हैं, वे अन्य ग्रन्थों में उपलब्ध नामों से पृथक हैं। इससे ज्ञात होता है कि यह नाटक प्रथम या द्वितीय शताब्दी ई० में लिखा गया है । पल्लव राजा महेन्द्रविक्रमन के ६१० ई० के एक शिलालेख में मत्तविलासप्रहसन के साथ इस नाटक का भी उल्लेख है । इस शिलालेख का पाठ्य अस्पष्ट है, अतः उसके आधार पर इस नाटक के लेखक के विषय में कोई निर्णय नहीं किया जा सकता है। कुछ आलोचक इस शिलालेख के आधार पर इस नाटक का रचयिता महेन्द्र-विक्रमन् को मानते हैं । इसमें वर्णन है कि भगवान् नाम का एक योगी अपनी यौगिक शक्ति के प्रदर्शन के लिए अज्जका नाम की एक वेश्या के शव में प्रवेश करता है । वह शव जीवित हो जाता है और संन्यास-धर्म का उपदेश देने लगता है । यमराज ने वेश्या की आत्मा को आदेश दिया कि वह पुनः संसार में जावे । उसके निर्जीव शरीर को योगी भगवान् ने अपनी इच्छानुसार प्रवेश के लिए अपने पास सुरक्षित
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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