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________________ भूमिका विद्वानों में न्यूलर, कोलहान, फ्रांसिस बॉप, ग्रिम, ग्रासमान, येस्पर्सन, वाकर नागल, रॉठ, मेक्समूलर, वेबर तथा अन्य विद्वान् हैं। इन्होंने भारतीय साहित्य की समृद्धि में बहुमूल्य देन दी हैं। इन्होंने भारतीय ग्रन्थों के उत्तम संस्करण निकाले हैं और साथ हो यूरोपीय भाषाओं में उनका अनुवाद भी किया है । १६५१ ई० में अब्राहम रोगर ने डच भाषा में भर्तृहरि की कविताओं (भत हरिशतक) का अनुवाद किया। १७८६ ई० में सर विलिमय जोन्स ने इंग्लिश् में अभिज्ञानशाकुन्तल का अनुवाद किया, जिसकी प्रशंसा हेर्डर और गेटे ने की। चार्ल स विल्किन्स ने १७८५ ई० में भगवद्गीता और १७६४ में मनुस्मृति प्रकाशित को। मैक्समूलर ने चारों वेदों को मूलप्रति प्रकाशित की और ऋग्वेद का अनुवाद भी किया। यूरोपीय विद्वानों ने एतिहासिक अध्ययन के लिए जिन ग्रंथों का आश्रय लिया है, उनमें से कुछ उपर्युक्त हैं। पाश्चात्य विद्वानों ने भारतीय साहित्य के आलोचनात्मक अध्ययन का प्रारम्भ किया और उसी मार्ग पर चलते हुए भारतीय विद्वानों ने भी भारतीय साहित्य के वास्तविक रूप को समझने के लिए जो जीवनोत्सर्ग किया है, उसका फल विभिन्न रूपों में हुआ है। पाश्चात्य विद्वानों ने ही वैज्ञानिक अनुसंधान का द्वार खोला है और भारतीयों का इस विषय में पथप्रदर्शन किया है। यूरोपीय विद्वानों ने जो निष्कर्ष निकाले हैं, वे कुछ सीमा तक ही स्वीकार करने योग्य हैं । ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसंधान में प्रवृत इन विद्वानों ने उन परिस्थितियों पर ध्यान नहीं दिया है, जिन परिस्थितियों में भारतीय विद्वानों ने अपने ग्रन्थ लिखे हैं। इस तथ्य पर विचार किए बिना किसी भी साहित्यक ग्रन्थ का निष्पक्ष मूल्यांकन नहीं किया जा सकता है । पाश्चात्य विद्वानों ने भारतीय साहित्य में प्राप्य धार्मिक-भावना और सहिष्णुता की भावना को वास्तविक त्रुटि मानी है और इसके द्वारा कलात्मक प्रभाव और साहित्य की वास्तविकता का अभाव मानते हैं । उन्होंने कुछ सिद्धान्त प्रस्तुत किए हैं और वे अपने ढंग से इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं । उनके ये सिद्धान्त अधिकतर वास्त
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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