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________________ संस्कृत नाटक २२७ सूत्रधारकृतारम्भैः नाटकैर्बहुभूमिकः । सपताकैर्यशो लेभे भासो देवकुलैरिव ।। हर्षचरित--प्रस्तावना श्लोक १५ 'पताका' शब्द किसी पात्र की उस भयंकर घटना की ओर संकेत करता है जिसका सम्बन्ध उस पात्र से सीधा नहीं है । यहाँ बाण का यह कहना है कि भास के नाटकों में पताकास्थान" है। दण्डिन् की कल्पना है कि भास अपने नाटकों से आज भी जीवित है । देखिए :-- सुविभक्तमुखाघङ्ग र्व्यक्तलक्षणवृत्तिभिः । परेतोऽपि स्थितो भासः शरीरैरिव नाटकैः ।। अवन्तिसुन्दरी--प्रस्तावना श्लोक ११ दर्भाग्यवश न तो भास के किसी भी नाटक की सत्यता सिद्ध हो सकी और जो नाटक प्राप्य हैं, न तो उनके लेखक का ही निर्विरोध निश्चय किया जा सकता है। उनमें से कतिपय प्राप्य नाटक तो उनके हो सकते हैं, कुछ, जो सचमुच उनके हैं, अब तक प्रकाश में नहीं आये। ऐसी प्रसिद्धि है कि भास ने नाट्यशास्त्र पर एक ग्रन्थ लिखा था, परन्तु वह अप्राप्य है। ___ कालिदास ने मालविकाग्निमित्र की प्रस्तावना में भास के साथ ही सौमिल्ल और कविपुत्र इन दो और प्रसिद्ध नाटककारों का उल्लेख किया है। कुछ ग्रन्थ में इन दोनों नामों के स्थान पर रामिल और सौमिल नाम प्राप्त होते हैं । इन दोनों लेखकों के विषय में कुछ भी निश्चित रूप से ज्ञात नहीं है । राजशेखर ने रामिल और सौमिल की रचना शूद्रककथा नामक ग्रन्थ माना है । यह ग्रन्थ भी अप्राप्य है । इसके अतिरिक्त कालिदास के पूर्ववर्ती नाटककारों के विषय में और कुछ ज्ञात नहीं है । कालिदास कालिदास तीन नाटकों का रचयिता है-मालविकाग्निमित्र, विक्रमोर्वशीय और शाकुन्तल । ऐसी प्रसिद्धि है कि इन नाटकों और काव्यों के अतिरिक्त १. पञ्चरात्रम् २-६, अभिषेकनाटक ५-११ ।
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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