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________________ संस्कृत नाटक . २१६ गया है । इस प्रस्तावना में न नाटककार का नामोल्लेख है और न नाटक का ही नाम-निर्देश है । इन सभी नाटकों की. प्रस्तावना प्रायः एक-सी है। (ग) भरतवाक्य अधिकांश नाटकों में समान है और उसकी समाप्ति प्रार्थना में होती है--'राजसिंहः प्रशास्तु नः' । (घ) पाणिनीय व्याकरण की दृष्टि से प्रसिद्ध प्रयोग प्रायः सभी में हैं। जैसे-आपृच्छामि, उपलप्स्यति, द्रक्ष्यते, रक्षते, काशिराज्ञः, सर्वराज्ञः, अलं कर्तुम् इत्यादि । इन कारणों से ज्ञात होता है कि इनका लेखक एक ही व्यक्ति है । (२) साहित्यशास्त्रियों ने भास और उसके नाटक स्वप्नवासवदत्तम् का विशेष रूप से उल्लेख किया है और स्वप्नवासवदत्तम् से उद्धरण भी दिये हैं। इन श्लोकों में से कुछ श्लोक स्वप्नवासवदत्तम् में प्राप्त होते हैं । अतः यह स्वप्नवासवदत्तम् मूल स्वप्नवासवदत्तम् ही होना चाहिए। साहित्यशास्त्रियों के द्वारा उद्धृत कुछ श्लोक जो इसमें प्राप्त नहीं होते हैं, उनका कारण यह हो सकता है कि इसके मूल ग्रन्थ के कतिपय श्लोक नष्ट हो गये होंगे । साहित्यशास्त्रियों ने ग्रन्थ-निर्देश आदि के बिना ही जो श्लोक उद्धृत किये हैं, उनमें से बहुत से श्लोक इनमें प्राप्त होते हैं । साहित्यशास्त्रियों ने चारुदत्त नाटक का नामोल्लेख किया है और उसके लेखक का नाम-निर्देश नहीं किया है, वह भास के इन नाटकों में से एक नाटक है । अतः इन नाटकों का रचयिता एक ही व्यक्ति होना चाहिए और वह व्यक्ति भास है । परवर्ती लेखक बाण' और दण्डी आदि ने भास को कई नाटकों का रचयिता माना है। ये नाटक १२वीं या १३वीं शताब्दी तक प्राप्त रहे होंगे । इसके बाद के लेखकों ने इन नाटकों का उल्लेख नहीं किया है । श्री गणपति शास्त्री ने 'त्रयोदश त्रिवेन्द्रमनाटकानि' नाम से इन नाटकों का संपादन किया है। उनके इस विचार का समर्थन कतिपय पाश्चात्य और भारतीय विद्वानों ने किया है। जो उनके इस विचार का समर्थन १. हर्षचरित भूमिका श्लोक १५ २. अवन्तिसुन्दरीकथा भूमिका श्लोक ११ ।
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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