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________________ गीति-काव्य १४६ जा सकता है । कुछ आलोचकों का मत है कि ये सभी काव्य शंकराचार्य की रचना नहीं हैं। उनका कथन है कि सौन्दर्यलहरी जैसे गीतिकाव्य शंकराचार्य की रचना नहीं हो सकते हैं. क्योंकि ये गीतिकाव्य शक्ति आगमों के अनुसार शक्ति की पूजा का विधान करते हैं और शंकराचार्य ने अपने ब्रह्मसूत्रभाष्य में शक्ति प्रागमों की प्रामाणिकता का खंडन किया है । किन्तु भारतीय परम्परा सौन्दर्यलहरी का लेखक शंकराचार्य को मानती है। इन गीतिकाव्यों के लेखक के विषय में निश्चयपूर्वक कुछ नहीं कहा जा सकता है। इन गीतिकाव्यों में से कुछ अवश्य हो शंकराचार्य की रचना हैं । शेष मठों के अध्यक्षों की रचना होंगी। इनको भी शंकराचार्य की उपाधि प्राप्त थी। इनमें से जो शंकराचार्य की निजी रचनाएँ मानी जाती हैं, उनमें से विशेष उल्लेखनीय ये है-- अन्नपूर्णादशक, अन्नपूर्णाष्टक, कनकधारास्तव, दक्षिणामूर्त्यष्टक, रामभुजंगस्तोत्र, लक्ष्मीनृसिंहस्तोत्र, विष्णुपादादिकेशान्तवर्णन, शिवभुजंगस्तोत्र, शिवानन्दलहरी और सौन्दर्यलहरी । केरल के राजा कुलशेखर ने विष्णु की स्तुति में मुकुन्दमाला गीतिकाव्य बनाया है । वह और वैष्णव सन्त कुलशेखर अलवर एक ही व्यक्ति हैं। इस गीतिकाव्य की रचना का समय ७०० ई० दिया गया है। इस गीतिकाव्य में भक्तिभाव को बहुत महत्त्व दिया गया है। इसकी शैली परिष्कृत, स्पष्ट और अति सरल है। मूक कवि संभवतः शंकराचार्य का समकालीन था। यह जन्म से ही मूक था। काँची को देवो कामाक्षी की कृपा से उसे भाषण की शक्ति प्राप्त हुई थी । इस शक्ति का उसने देवी की पूजा में सदुपयोग किया और पाँच सौ सुन्दर गेय पद्यों से युक्त मकपंचशती नामक गीतिकाव्य लिखा । नवम शताब्दी के पूर्वार्ध में कश्मीर के कवि पुष्पदन्त ने शिव की स्तुति में महिम्नस्तव काव्य निश्चित किया है, वह त्रुटिपूर्ण है । शंकराचार्य तथा उनके समकालीन विद्वानों का ठीक समय महामहोपाध्याय एस० कुप्पुस्वामी ने मंडन मिश्र की पुस्तक ब्रह्मसिद्धि की भूमिका में दिया है।
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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