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________________ १४८ संस्कृत साहित्य का इतिहास शतक आदि के रूप में है अर्थात किसी में ५, ८, १०, ५० या १०० आदि पद्य हैं । इनमें से अधिकांश पद्यात्मक हैं । कुछ दण्डक हैं । ये गद्य रूप में हैं । इनकी रचना संगीतात्मक रूप होती है । इनमें पदों के तुल्य विभाजन होना है । कुछ गद्य रूप में हैं । इनका संगीत के रूप में पाठ होता है । ऐसे संगीतात्मक गद्यों की उत्पत्ति वैदिक काल तथा रामायण और महाभारत के काल में दिखाई देती है । ये धार्मिक गीतिकाव्य असंख्य हैं । इनमें से अधिकांश के लेखक अज्ञात हैं । कालिदास कुछ धार्मिक गीतिकाव्यों के भो रचयिता माने जाते हैं । श्यामलादण्डक उनकी कृति मानी जाती है । बुद्धचरित और सौन्दरनन्द के लेखक अश्वघोष ( प्रथम शताब्दी ई० ) ने गाण्डिस्तोत्रगाथा नामक गीतिकाव्य लिखा है । इनमें धार्मिक संवाद है । एक जैन कवि सिद्धसेन दिवाकर (२०० ई० के लगभग ) ने जैन तीर्थंकरों की प्रशंसा में कल्याणमन्दिरस्तोत्र लिखा है । राजा हर्ष को सुप्रभातस्तोत्र और अष्टमहाश्रीचंत्यस्तोत्र का रचयिता कहा जाता है । ये दोनों स्तोत्र बौद्ध धर्म के भावों से युक्त हैं । बाण (६०० ई०) ने चण्डीशतक लिखा है । इसमें शिव की पत्नी चण्डी के विषय में १०० श्लोक हैं | मानतुंग को भक्तामर स्तोत्र का रचयिता कहा जाता है । यह देवताओं की स्तुति के रूप में लिखा गया है । वह हर्ष का समकालीन था. अतः उसका समय सातवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में मानना चाहिए । मयूर को वाण का श्वगुर माना जाता है । वह हर्ष का आश्रित कवि था । उसने सूर्य की स्तुति में गौड़ी रीति में सूर्यशतक लिखा है । सर्वज्ञमित्र ने बौद्धों में आस्तिकवादियों के प्रिय देवता तारा की स्तुति में स्रग्धरास्तोत्र बनाया है । उसका समय अज्ञात है । भक्तिभावना प्रधान कतिपय धार्मिक गीतिकाव्य प्रसिद्ध अद्वैतवादी शंकराचार्य (६३२ से ६६४ ई० ) की कृति माने जाते हैं ।" निश्चित सूचना के प्रभाव के कारण इन सबके लेखक का निर्णय निश्चयपूर्वक नहीं किया १. पाश्चात्य विद्वानों ने शंकराचार्य का जो समय ७८८० से ८०० ई०
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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