SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 123
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११२ संस्कृत साहित्य का इतिहास जातियाँ भारत में आईं और वे भारतीय हो गईं। उन्होंने भारतीय शिक्षा, कला, स्थापत्य और मूर्तिकला आदि को प्रश्रय दिया । ऋषभदत्त, कनिष्क और रुद्रदामन आदि संस्कृत के आश्रयदाता हुए हैं। साथ ही यह भी स्मरण रखना चाहिए कि विदेशी आक्रमणकारियों ने देश के एक भाग पर ही अधिकार कर रक्खा था । वे देश के अन्य भाग में संस्कृत के प्रचार और प्रसार को नहीं रोक सकते थे । यहाँ यह स्मरण रखना चाहिए कि ५४४ ई० में यशोवर्मन् विष्णुवर्धन ने विदेशियों को पदच्युत किया था न कि विक्रमादित्य ने । विदेशियों को भारत से बाहर निकालने का कार्य गुप्त राजाओं ने ४०० ई० पूर्व से ही प्रारम्भ कर दिया था। इस बात के प्रमाण विद्यमान हैं कि इस काल में भी साहित्यिक प्रगति सर्वथा बन्द नहीं हुई थी । जूनागढ़ राज्य के गिरनार स्थान में रुद्रदामन् का १५० ई० के लगभग का एक शिलालेख प्राप्त होता है । यह शिलालेख सुदर्शन नामक झील के पुनरुद्धार के स्मृत्यर्थ लिखा गया था। इस शिलालेख से ज्ञात होता है कि इस शिलालेख का लेखक रुद्रदामन् शक राजा था। वह साहित्यशास्त्र के नियमों से सम्यक्तया परिचित था । सातवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में उत्पन्न बाण की गद्यशैली का प्रारम्भ इस शिलालेख में दृष्टिगोचर होता है । नासिक का शिलालेख प्रतिष्ठान के श्री पुलुमायी के १६वें वर्ष में प्राकृत में लिखा गया है । इसका समय १४६ ई० होता है । यह शिलालेख संस्कृत का प्राकृत में अनुवाद प्रतीत होता है । उसमें लम्बे समास हैं। श्रेण्य संस्कृत-साहित्य में प्राप्त होने वाले अनुप्रास और उपमाओं की झड़ी इसमें प्राप्त होती है। गुप्तकाल के दो मुख्य शिलालेख हैं । प्रथम शिलालेख समुद्रगुप्त की प्रशंसा में उसके आश्रित कवि हरिषेण ने लिखा है । यह इलाहाबाद के अशोकस्तम्भ पर लिखा हुआ है । यह ३४५ ई० का लिखा हुआ है । यह वैदर्भी रीति में १. A. A. Macdonell--History of Sanskrit Literature पृष्ठ ३१८ ।
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy