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________________ काव्य-साहित्य कालिदास, के बाद के कवि १११ हैं । इस महाकाव्य का चीनी अनुवाद ४१४ से ४२१ ई० के बीच में हुआ है और तिब्बती अनुवाद सातवीं शताब्दी ई० में हुआ है ।। अश्वघोष की शैली मधुर नहीं है । उसके काव्य में अनुप्रास अधिक है । उसने कतिपय अप्रचलित शब्द-रूप और धातु-रूपों का प्रयोग किया है। उनमें कुछ प्रयोग ऐसे भी हैं, जो संस्कृत में सर्वथा अप्रचलित हैं। जैसे, 'किमत' के स्थान पर 'कि बत' का प्रयोग किया है और 'चेत्' के स्थान पर ‘स चेत्' का प्रयोग किया है। अश्वघोष ही सर्वप्रथम बौद्ध कवि और दार्शनिक है, जिसने प्राकृत को छोड़कर संस्कृत का प्रयोग किया है। अश्वघोष के पश्चात् लगभग तीन शताब्दी तक कोई भी प्रसिद्ध कवि नहीं हुआ है । ऐसा प्रतीत होता है कि इस समय साहित्यिक रचनाएँ प्रायः नहीं हुई । प्रो० मैक्समूलर ने संस्कृत का पुनरुद्धारवाद प्रचलित किया है । उसमें उन्होंने यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि इस बीच संस्कृत-साहित्य की रचना क्यों नहीं हुई है। उनका मत है कि प्रथम शताब्दी ई० में विदेशियों ने भारतवर्ष पर आक्रमण किया। उन्होंने भारतीयों को साहित्यक परम्परा नष्ट कर दी । उनका प्रभाव ५४४ ई० तक रहा। इस सन् में उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने उनको परास्त किया और देश से निकाला। इस राजा ने संस्कृत का पुनरुद्धार किया और उसके आश्रय में कई प्रसिद्ध कवि हुए । मैक्समूलर के मत को स्वीकार करने वाले कतिपय विद्वानों ने उस समय के भारतीय साहित्य के विषय में कुछ बातें कही हैं। एक का कथन है कि “भारतीय श्रेण्य काव्य-साहित्य का प्रारम्भ ७वीं शताब्दी ई० के पूर्वार्ध से प्रारम्भ होता है। किसी भी काव्य-ग्रन्थ का समय इस काल से पूर्व निश्चय रूप से नहीं रक्खा जा सकता है। मैक्समूलर के इस पुनरुद्धारवाद का खण्डन ब्यूलर और फ्लीट के अनुसंधानों ने किया है। उन्होंने यह सिद्ध किया है कि शक आदि विदेशी १. A. A. Macdonell-History of Sanskrit Literature पृष्ठ ३१८
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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