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________________ काव्य-साहित्य १०६ प्रतीत होता है, तथापि शैली और भाषा के आधार पर यह निर्णय करना कठिन है कि यह रचना पहली है और यह बाद की है। रघुवंश के प्रारम्भिक श्लोकों से ज्ञात होता है कि वह काव्य के क्षेत्र में नवागन्तुक ही है । इसके आधार पर रघुवंश को कतिपय विद्वान् पहली रचना मानते हैं । रघुवंश की कथा १६वें सर्ग पर समाप्त हो गई है। इसका कारण कुछ विद्वानों ने बताया है कि कालिदास की मृत्यु के कारण यह ग्रन्थ इतने पर ही अधूरा रह गया है। परन्तु यह उचित प्रतीत होता है कि उस सर्ग के बाद जो रघुवंशी राजा आये हैं, उनकी कीर्ति क्षीण हो चुकी थी, अतः कालिदास ने आगे वर्णन नहीं किया । इस आधार पर रघुवंश को बाद की रचना नहीं माना जा सकता है। कुमारसंभव में जो शृङ्गार का वर्णन हुआ है, वह रघुवंश की अपेक्षा सुन्दर और उन्नत रूप में हुआ है । इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि रघुवंश का शृङ्गार-वर्णन हीन है । उपयुक्त आधार पर यह माना जा सकता है कि कुमारसंभव बाद की रचना है ।
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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