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________________ १०८ संस्कृत साहित्य का इतिहास कुश, लव और उसके उत्तराधिकारियों का वर्णन है । इसमें राजा अग्निवर्ण के स्वर्गवास तक का वर्णन है । ___कालिदास ने कुमारसम्भव के लिए जो भाव लिया है, उसके द्वारा उसे 'हिमालय का विशद और वास्तविक वर्णन करने का तथा वसन्त के वर्णन का अवसर मिला है । शिव और पार्वती के विवाह के वर्णन से ज्ञात होता है कि कालिदास भारतीय वैवाहिक परम्परात्रों को कितनी सूक्ष्मता के साथ जानता 'था । ब्रह्मचारी-वेषधारी शिव का पार्वती के साथ वार्तालाप अपने ढंग का अनुपम है। रघुवंश में भाव की एकता नहीं है । कालिदास ने इस न्यूनता को वर्णनों और संवादों के द्वारा पूर्ण किया है । इसमें मुख्य संवाद वाले दृश्य हैंदिलीप और सिंह का संवाद, रघु और इन्द्र का संवाद । मुख्य वर्णनात्मक दृश्य ये हैं-- इन्दुमती का स्वयंवर-विवाह, इन्दुमती के स्वर्गवास पर अज का विलाप, रामायण के अयोध्या काण्ड और उसके बाद के चार काण्डों का सुन्दर रूप में संक्षिप्त वर्णन और रघु की दिग्विजय-यात्रा। इसके १३ वें सर्ग का वर्णन अत्युत्तम है । इसमें कालिदास ने अपनी कवि-प्रतिभा का बहुत अच्छा परिचय दिया है । १४वाँ सर्ग सर्वोत्तम है । इसमें कालिदास ने अपनी व्यंजना-शक्ति का उत्कृष्ट परिचय दिया है। इसके ६, १५, १७ आदि सर्ग उच्चकोटि के नहीं हैं। नवम सर्ग में कालिदास ने यमक अलंकार के प्रयोग में निपुणता का परिचय दिया है । इस आधार पर कुछ लोगों का विचार है कि कालिदास ने रघुवंश के भी केवल प्रारम्भिक पाठ सर्ग लिखे हैं। रघुवंश में इस प्रकार की असमता का कारण उसको वर्ण्य-वस्तु है । यदि कालिदास को केवल आठ सर्गों का ही रचयिता मानेंगे तो सर्ग १०, १३, १४, १६ आदि का रचयिता न मानने पर उसका महत्त्व बहुत कुछ कम हो जाएगा, क्योंकि ये सर्ग इस काव्य में बहुत उच्चकोटि के हैं। इनका रचयिता कालिदास ही होना चाहिए। ____ यह निर्णय करना सरल नहीं है कि कौन-सा काव्य पहले का है और कौन-सा बाद का। यद्यपि रघुवंश को इनमें से बाद की रचना मानना उचित
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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