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________________ छहढाला सावधान कर देने मात्रसे और कहीं आर्थिक सहायता देने से संभव है। अन्नादि के अकालमें कितने ही लोग मांस आदि अभय और निंद्य पदार्थों को खाकर चारित्रसे पतित हो जाते हैं, कितने ही लोग अन्नके अत्यन्त मंहगे हो जानेसे अथभावके कारण उसे खरीदने में असमर्थ हो जाते हैं। ऐसे समय केवल मौखिक सहायता से काम नहीं चलता है, किन्तु धन-व्यय कर जहांसे मिले, वहांसे अन्नको मंगाकर स्वयं हानि उठाते हुए भी सस्ते भाव पर बेचकर गरीब और असमर्थ व्यक्तियोंके लिये अन्न सुलभ कर देना चाहिए, जिससे कि वे अखाद्य खाने बच सकें | इसी प्रकार कितने ही गरीब नवयुवक विवाह आदि न होनेसे चारित्र भ्रष्ट होने लगते हैं, उनकी रक्षाके लिए आवश्यक है कि सर्व साधारण लोग अपनी बहिन-बेटियों को सुशिक्षित करके उन्हें विवाहें समाज उनके विवाह आदि की चिन्ता करे और उन कारणोंको रोके, जिनके कारण समाज के गरीब नवयुवकोंको कन्याएं नहीं मिलती हैं। इसी प्रकार आजीविका के अभाव में कितने ही परिवार विधर्मी बन जाते हैं, उनके स्थिति-करण के लिए यह आवश्यक है कि समाज और समाज के दानी मानी पुरुष अपने दानका उपयोग उन गरीब परिवारों की आजीविका के स्थिर करनेमें करें । धर्माचरण के क्रम और रहस्यको न जाननेके कारण धनवान् लोग प्रभावना अंगके नाम पर लाखों रुपया पूजा, प्रतिष्ठा आदि में खर्च कर देते हैं, उन्हें ज्ञात होना चाहिए कि आचार्योंने पहले स्थितिकरण अंग,
SR No.032048
Book TitleChhahadhala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Pandit, Hiralal Nyayatirth
PublisherB D Jain Sangh
Publication Year1951
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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