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________________ छहढाला प्रहण करके पराये धनको हरण करते हैं, तथा अनेकों प्रकारके अन्यायोंको करते हैं, वे घोर नरकमें जाकर दुःखोंको भोगते हैं। जो लज्जासे रहित, कामसे उन्मत्त और, जवानीमें मस्त, हो परस्त्री में आसक्त रह रात-दिन मैथुनका सेवन करते हैं, वे प्राणी नरकों में जाकर घोर दुःखको पाते हैं । जो लोग पुत्र, स्त्री, स्वजन और मित्रोंके जीवनार्थ दूसरों को ठगकर अपनी तृष्णा को बढ़ाते हैं, तथा पराये धनको हरण करते हैं वे तीव्र दुःखके उत्पन्न करनेवाले नरक में जाते हैं । जो जीव आयु के बंधके समय अनन्तानुबंधी क्रोध, मान, माया और लोभ कषायसे व्याप्त चित्त रहते हैं, कृष्ण, नील, कापोत इन तीन अशुभलेश्याओंके अनुरूप जिनकी प्रवृत्त रहती है, जो बहुत आरंभ और परिग्रहमें मस्त रहते हैं, दया और धर्मसे जिनका हृदय शून्य रहता है और जो आहार, भय, मैथुन और परिग्रह इन चारों संज्ञाओंमें अत्यन्त आसक्त रहते हैं, ऐसे पापी मनुष्य और * छेत्त ण भितिं वाधिदण पिपं पट्टादि घेत्त ण धर्ण हरता। अण्णेहि अण्णाअसएहि मूढा भुजंतिं दुक्खं गिरयम्मि घोरे ॥ • लज्जाए चत्ता मयणेण मत्ता तारुण्ण रत्तापरदाररता। रती-दिणं मेहुणामा चरंता पावंति दुक्खं णिरएसु घोरं ॥ । पुशे कलशे सजणम्मि मिते जे जीवणत्थं पर वंचणेणं । वडढंति तिषणा दविणं हरते ते तिवदुक्खे णिरयम्मि जंति ।। तिलोयपरणती अ० २ गा०३६४-३६६ ।
SR No.032048
Book TitleChhahadhala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Pandit, Hiralal Nyayatirth
PublisherB D Jain Sangh
Publication Year1951
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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