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________________ प्रथम ढाल कथा कही है। किन्तु शास्त्रोंमें इस क्रमके कुछ अपवाद भी मिलते हैं, जिनसे ज्ञात होता है कि निगोदसे निकलकर जीव सीधा मनुष्य पर्याय भी प्राप्त कर सकता है, और उसी भवसे मोक्ष भी जा सकता है। ___ अब आगे ग्रन्थकार त्रस पर्याय पानेकी दुर्लभताको बतलाते हुए उसके दुःखोंका वर्णन करते हैंदुर्लभ लहि ज्यों चिन्तामणी, त्यों पर्याय लहि त्रसतणी* । लट पिपील अलि आदि शरीर, धरि धरि मर्यो सही बहु पीर ॥६ ____ अर्थ-जिस प्रकार चिन्तामणि-रत्नका पाना अत्यंत दुर्लभ है, उसी प्रकार त्रसकी पर्यायका पाना भी अत्यन्त कठिन है । सो इस जीवने निगोद पर्यायमें अनन्त-काल बितानेके बाद अत्यन्त कठिनतासे त्रस पर्यायको प्राप्त किया, तथा लट, केंचुआ आदि द्वीन्द्रिय-पर्याय, पिपीलिका, (कीड़ी) मकोड़ा आदि त्रीन्द्रियपयोय, और अलि ( भौंरा ) मक्खी आदि चतुरिन्द्रिय पर्यायोंको बार-बार धारण कर मरा और बहुत दुःखोंको सहा। भावार्थ-वस पर्यायकी असंख्यात कालप्रमाण कायस्थिति के पूरा होने तक यह जीव द्वीन्द्रिय आदि विकलेन्द्रियोंमें बारबार जन्म-मरण किया करता है। शंका-कायस्थिति किसे कहते हैं ? * चिन्तामणिव्व दुलहं तपत्तणं लहदि कट्टण ||२८५ स्वामिका०॥
SR No.032048
Book TitleChhahadhala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Pandit, Hiralal Nyayatirth
PublisherB D Jain Sangh
Publication Year1951
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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