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________________ १० छहढाला ‘सकता है और न इशारोंसे अपना दुःख ही किसीसे प्रगट कर पाता है, किन्तु भीतर-ही-भीतर असीम दुःखका अनुभव कर आकुल-ब्याकुल हो छटपटाता रहता है, इसी प्रकारकी अब्यक्त वेदनाको एकेन्द्रिय निगोदिया जीव प्रतिक्षण सहा करते हैं। इस प्रकार दुःखोंको सहते-सहते भाग्योदयसे कोई जीवनिगोदसे बाहर निकल पाता है, जिस प्रकार कि भाड़में भुंजते हुए अनाजमेंसे कोई एक दाना भाड़से बाहर निकल कर आजाय । इस प्रकार बाहर निकले हुए जीव क्रमशः या अक्रमशः पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और प्रत्येक वनस्पतिमें उत्पन्न होते हैं और उसमें असंख्यात काल तक रह कर जन्म-मरण आदिकी भारी वेदनाको भोगते हैं। शंका-प्रत्येक वनस्पति किसे कहते हैं ? समाधान-जिस वनस्पतिरूप एक शरीरका स्वामी एक ही जीव होता है, उसे प्रत्येक वनस्पति कहते हैं, जैसे आम, नीम, नारियल आदिके वृक्ष। शंका-निगोदसे निकलनेका क्या क्रम है ? समाधान-साधारणतः निगोदसे निकलकर एकेद्रिय जीवोंकी पृथ्वी, जल आदि पर्यायोंमें असंख्यात वर्षों तक परिभ्रमण कर, पुनः द्वीन्द्रियादि पर्यायोंमें भी असंख्यात वर्षों तक भ्रमण करनेके बाद पंचेन्द्रिय पर्यायोंको प्राप्त होता है। छहढालाकारने इसी क्रमको सामने रख कर जीवके संसार-परिभ्रमणकी
SR No.032048
Book TitleChhahadhala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Pandit, Hiralal Nyayatirth
PublisherB D Jain Sangh
Publication Year1951
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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