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________________ पांचवीं ढाल १५३ जिसे इस जीवने क्रमसे भोग भोग कर अनन्तवार न छोड़ दिया हो, इसीका नाम द्रव्यपरिवर्तन है । (२) क्षेत्रपरिवर्तन इस त्रिलोकव्यापी लोकाकाशके असंख्यात प्रदेशों में से ऐसा एक भी प्रदेश नहीं है, जहां यह जीव अनन्तवार न उत्पन्न हुआ हो और अनन्तवार न मरा हो । इसीका नाम क्षेत्र परिवर्तन है । । (३) कालपरिवर्तन- दश कोड़ाकोड़ी सागरोंका एक उत्सर्पिणी काल होता है और इतने ही समयका एक अवसर्पिणी काल होता है । इन दोनों कालोंके समय में ऐसा एक भी समय बाकी नहीं बचा है जिनमें यह जीव क्रमसे अनन्तवार न जन्मा-मरा होवे । इस प्रकार कालके आश्रयसे जो परिवर्तन होता है उसे काल परिवर्तन कहते हैं * । सब्बे वि पुग्गला खलु कमसो भुत्तुझिया य जीवेण । असयं श्रणंतखुत्तो पुग्गलपरियटसंसारे ।। २५ ।। वारस वेक्खा 1 सव्वम्मि लोयखेत कमसो तं एन्थि जंग उत्पणं । गाह बहुसो परिभमिदो खेत्तसंसारे ||२६|| * उवसर्पिण व जादो मुदोय बहुसो भ्रमण दु कालसंसारे ||२७| समयावलियासु गिरवसेसासु । बारस अशुबेक्खा
SR No.032048
Book TitleChhahadhala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Pandit, Hiralal Nyayatirth
PublisherB D Jain Sangh
Publication Year1951
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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