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________________ १५२ छहढाला जीवके संसारी पदार्थोंमें ममता नष्ट हो जाती है और अर्हत्सर्वज्ञ के बचनोंमें दृढ़ विश्वास जागृत हो जाता है। अब आगे संसार भावना का वर्णन करते हैं:चहु-गति दुख जीव भरे हैं, परिवर्तन पंच करे हैं। सब विध संसार असारा, यामें सुख नाहिं लगारा ॥५॥ - अर्थ-यह जीव चारों गतियोंमें भ्रमण करता हुआ दुःख सहन करता है और पांच परिवर्तन किया करता है। यह संसार सर्वप्रकारसे असार है, इसमें सुखका लेश भी नहीं है। विशेषार्थ-जीव चारों गतियों में परिभ्रमण करता हुआ कैसे कैसे दुःख उठाता है, यह पहली ढालमें अच्छी तरह बतला आये हैं । संसारमें भ्रमण करते हुए यह जीव पांच परिवर्तनोंको किया करते हैं । वे पांच परिवर्तन ये हैं:-द्रव्यपरिवर्तन, २ क्षेत्रपरिवर्तन, ३ कालपरिवर्तन, ४ भवपरिवर्तन और ५ भावपरिवर्तन । इनका स्वरूप संक्षेपसे इस प्रकार जानना चाहिए:-- ___ (१) द्रव्यपरिवर्तन-ज्ञानावरणादि आठ काँके रूप परिणत होने वाले पुद्गल द्रव्यको कमद्रव्य कहते हैं और औदारिकादि तीन शरीर और छह पर्याप्तियोंके रूप परिणत होने वाले पुद्गल द्रव्यको नोकर्म द्रव्य कहते हैं । इन दोनों प्रकारके पुद्गलोंका प्रमाण अनन्त है । इनमें से ऐसा एक भी पुद्गल नहीं बचा है * तत्त्वार्थराज० अ०६ सू० ७ वा० २ ।
SR No.032048
Book TitleChhahadhala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Pandit, Hiralal Nyayatirth
PublisherB D Jain Sangh
Publication Year1951
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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