SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 132
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२७ चौथी ढाल दोनों का धारण करना इस शिक्षाव्रत-धारीको आवश्यक है। इसी प्रकार श्रावकोंके जो १७ नियम अन्य शास्त्रोंमें बताये हैं, वे भी इसी शिक्षाव्रतके अन्तर्गत जानना चाहिये।। ४-अतिथि संविभाग-शिक्षाव्रत-मुनि आदि अतिथिके लिये आहार, औषधि आदिके दान देनेको अतिथि संविभाग कहते हैं। जिसके तिथिका विचार नहीं, अर्थात् जो सदाकाल व्रती है, ऐसे मुनिको अतिथि कहते हैं, अपने भोजन आदिमें से दान देने को संविभाग कहते हैं । इस दानके चार भेद कहे गये हैं:- आहार दान, औषधिदान, शास्त्रदान और अभयदान । शरीरके निर्वाहके लिये तथा निराकुलता-पूर्वक धर्मसाधनके लिये आहार और औषधि दान देने की आवश्यता है तथा आत्मज्ञानकी प्राप्तिके लिये शास्त्रदानकी और आत्मस्वरूपकी प्राप्तिके लिये अभय दानकी आवश्यकता है । अतएव श्रावकको चारों प्रकारका दान विधिपूर्वक भक्तिके साथ पुण्योदय से उपलब्ध उत्तम, मध्यम और जघन्य पात्रको प्रति-दिन देना चाहिये। ___ इस प्रकार श्रावकके बारह व्रत कहकर, उनके अतीचारोंको छोड़ने और मरते समय संन्यास धारण करनेका विधान करते हुए श्रावकके व्रतोंका फल कहते हैं: बारह व्रतके अतीचार पन पन न लगावे, मरण-समय संन्यास धारि तसु दोष नशावे ।
SR No.032048
Book TitleChhahadhala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Pandit, Hiralal Nyayatirth
PublisherB D Jain Sangh
Publication Year1951
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy