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________________ १२६ छहढाला और जघन्य ८ पहरका कहा गया है। उत्तम प्रोषधोपवासमें उपवासके पहले और पिछले दिन एक-एक एकाशन करना पड़ता है। मध्यम प्रोषधोपवासमें उपवासके पहले दिन एकाशन करना आवश्यक है और जघन्य प्रोषधोपवासमें पर्वके दिन ही उपवास करनेका विधान है । उपवासके दिन स्नान, तैलमर्दन, अलङ्कार धारण आदिका त्याग आवश्यक बताया गया है । हाँ जिनपूजाके निमित्त प्रासुक जलसे स्नान कर सकता है। .. ३ भोगोपभोग-परिमाण शिक्षाव्रत-जो भोजनादि पदार्थ एकबार सेवन करनेमें आते हैं, उन्हें भोग कहते हैं । जो वस्त्रादि पदार्थ बार बार उपयोगमें आते हैं उन्हें उपभोग कहते हैं। भोग और उपभोग की वस्तुओंका आवश्यकतानुसार नियम करके शेषमें ममता भावको दूर करना सो भोगोपभोग परिमाण शिक्षाव्रत है इन्द्रियों के विषय-भोगकी बढ़ती हुई तृष्णाके निवारण करने के लिये इस शिक्षाव्रतका पालन करना अत्यन्त आवश्यक है। अभक्ष्य आदि पदार्थोंका जीवन-पर्यन्तके लिए जो त्याग किया जाता है, उसे यम कहते हैं और भक्ष्य वस्तुओंका कुछ समयके लिए जो त्याग किया जाता है उसे नियम कहते हैं। इन "अक्षार्थानां परिसंख्यानं भोगोपभोगपरिमाणम् । अथैवतामन्यवधौ रागरतीनां तनूकृतये ॥ भुक्त्वा परिहातव्यो भोगो भुक्त्वा पुनश्च भोक्तव्यः । उपभोगोऽशनवसनप्रभृतिः पंचेन्द्रियो विषयः ।। रत्नकरंडश्रावका
SR No.032048
Book TitleChhahadhala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatram Pandit, Hiralal Nyayatirth
PublisherB D Jain Sangh
Publication Year1951
Total Pages206
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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