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________________ ( श ) ५ बोल पृष्ठ ४३२ से ४३३ तक। परठणो नाम करवानों छै (शाता० अ० २) इति जयाचार्य कृते भ्रमविध्वंसने उच्चारपासवणाऽधिकारानुक्रमणिका समाप्ता। कविताऽधिकारः। १ बोल पृष्ठ ४३४ से ४३५ तक । जेतला हुई। साधु-४ बुद्धिइ तेतला पइन्ना करे ( नन्दी प० ज्ञा० व० ) २ बोल पृष्ठ ४३५ से ४३६ तक। चली जोड़ करवानों न्याय ( नन्दी) ३ बोल पृष्ठ ४३६ से ४३७ तक। चली जोड़ करवा नों न्याय। ४ बोल पृष्ठ ४३७ से ४३६ तक । चतुर्विध काव्य ( ठा० ठा० ४ उ०४ ) ५ बोल पृष्ठ ४३६ से ४४० तक। गाथा करी वाणी कथी ते गाथा छन्द रूप जोड़ छै (उत्त० अ० १३ गा० १२) ६ बोल पृष्ठ ४४० से ४४२ तक । बाजारे लारे गावै तेहनों इज दोष कह्यो छै (निशीथ अ० १७ बो० १४०) इति श्री जयाचार्य कृते भ्रमविध्वंसने कविताऽधिकारानुक्रमणिका समाप्ता । अल्पपाप बहु निर्जराधिकारः । C १ बोल पृष्ठ ४४३ से ४४३ तक । अल्पपाप बहु निर्जरा (भग० श० ८ उ०६)
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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