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________________ ( व > ६ बोल पृष्ठ ४२० से ४२३ तक । चलो न मिले तो एकलो रहे एह नो निर्णय ( उत्त० अ० ३२ ) १० बोल पृष्ठ ४२३ से ४२३ तक । राग द्वेष ने अभावे एकलो कह्यो ( उत्त० अ० १ ) पृष्ठ ४२४ से ४२४ तक । ११ बोल राग द्वेष ने अभावे ऊभोर हे ( उत्त० अ० १ ) १२ बोल पृष्ठ ४२४ से ४२५ तक । राग द्वेष ने अभावे एकलो विचर स्यूं ( सू० अ० ४ उ० १ गा० ) १३ बोल पृष्ठ ४२५ से ४२८ तक । राग द्वेष नें अभाव एकलो विचरणो कह्यो ( उत्त० अ० १५ ) इति जयाचार्य कृते भ्रमविध्वंसने एकाकि साधु - अधिकारानुक्रमणिका समाप्ता । उच्चारपासवणाऽधिकारः । १ बोल पृष्ठ ४२६ से ४२६ तक । उच्चार, पालवण, परठणो बज्यों ते उच्चार आश्री वज्यों (निशीथ उ० ४ ) २ बोल पृष्ठ ४२६ से ४३० तक । पूर्वलो इज न्याय (निशीथ उ०४ ) ३ बोल पृष्ठ ४३० से ४३१ तक । पूर्वलो इज न्याय (निशीथ उ०४ ) ४ बोल पृष्ठ ४३१ से ४३२ तक । पठण नाम करवानों छै ( निशीथ उ० ३ )
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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