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________________ अथ अाज्ञाऽधिकारः। केतला एक अजाण जिन आज्ञा वाहिरे धर्म कहे। अर्ने आशा माही पाप कहे । अनें साधु आहार करे. उपकरण राखे. निद्रा लेवे. लघु नीति. बड़ी नीति परठे. नदी उतरे, इत्यादिक कार्य जिन आज्ञा सहित करे तिण में पाप कहे। अर्ने कहे-साधु नदी उतरे तिहां जीव री घात हुवे ते माटे नदी उतरे तेहनों साधु ने ' पाप लागे छै। इम जीव री घात नों नाम लेइ जिन आज्ञा में पाप कहे। अने' भगवन्त तो कह्यो श्री वीतराग थी पिण जीव री घात हुवे पिण पाप लागे नहीं। ते पाठ लिखिये छ । रायगिहे जाव एवं वयासी, अणगारस्स णं भंते ! भावियप्पाणो पुरओ दुहओ मायाए पेहाए रीयं रीय माणस्स पायस्स अहे कुकड पोतेवा वट्टा पोतेवा कुलिंग च्छाएवा परियावज्जेवा तस्सणं भंते! किं इरिया बहिया किरिया क जइ. संपराइया किरिया कजइ. गोयमा ! अणगारस्सणं भावियपणो जाय तस्सणं इरियावहिया किरिया कज्जइ. णो संघराइया किरिया कजइ. से केपट्टेणं भंते ! एवं वुच्चइ जहा सत्तमसए संवडुद्देसए जाव अट्टो णिक्खत्तो। सेवं भंते ! भंतेत्ति जाब विहरइ । ( भगवती श० १२ १.८) रा० राजग्रही नगरी में विषे. जा. यावत गोतम भगवान् ने इम कहे. प्र. अणगार में भगवर! भा० भावितात्मा ने. पु० आगल. दु०४ हाथ प्रमाणे भूमिका ने. पं० जोई में. री. ४४
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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