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________________ ३४४ भ्रम विध्वंसनम् । अने देवता में ३ भेद कहे । अनें नव तत्व में ५६३ भेदां में नारकी में सर्व देवता में जीव रा भेद २ कहे। एहवो अजाणपणो जेहने छ। तिण ने शुद्ध श्रद्धा आवणी परम दुर्लभ छै। जे सूक्ष्म एकेन्द्रिय रो अपर्याप्तो प्रथम जीव रो भेद ते पर्याय बंध्यां बीजो भेद हुवे। तीजो भेद पर्याय बंध्यां. चौथो हुवे। पांचमो भेद पर्याय बंध्यां छो हुवे । सातमो भेद पर्याय बंध्यां आठमो हुवे । चतुरिन्द्रिय नों अपर्याप्तो नवमो भेद पर्याय बंध्यां दशमो हुवे। ११ मो भेद असन्नी पंचेन्द्रिय रो अपर्याप्तो पर्याय बंध्यां असन्नी पंचेन्द्रिय रो पर्याप्तो १२ मो भेद हुवे। पिण असनी रो अपर्याप्तो ११ मो भेद पर्याय बंध्या चउदमों भेद सन्नी रो पर्याप्तो हुवे नहीं ए तो सन्नी रो अपर्याप्तो १३ मो भेद पर्याय बंध्यां १४ मों भेद सन्नी रो पर्याप्तो हुवे। इणन्याय नारकी. देवता में असन्नी रो अपर्याप्तो ११ मों भेद नथी। ए तो १३ मों भेद छै ते पर्याय बंध्यां १४ मो होसी । ते माटे ए सन्नी रो अपर्याप्तो १३ मों भेद छै। पिण असनी रो पर्याप्तो नहीं। जे आर्याप्ता पणे तो असन्नी अने पर्याय बंध्यां सन्नी हुवे । ए तो वात प्रत्यक्ष मिले नहीं। ए देवता में अमें नारकी में असन्नी मरी जाय तेहनों नाम असन्नी छै। ते पिण विभङ्ग न पामे तेतला काल मात्र इज अवधि दर्शन सहित नेरझ्या अनें देवता नो नाम सन्नी छै। अने अवधि दर्शन रहित नेर. इया अने देवता नो नाम असन्नी छै। ते संज्ञा मात्र अप्सन्नी छ। पिण असन्नी रो भेद नहीं। डाहा हुवे तो विचारि जोइजो । इति ६ बोल सम्पूर्ण। इति जीवभेदाऽधिकारः।
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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