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________________ विनयाऽधिकार 1 धेयं ठाणं संपत्तासं गमो जिणाणं जीयभणाणं रामोत्थुरां भगवओ freeera आईगरस्स जाव संपावित्र कामरस वंदामि भगवंतं तापगयं इहगए पासउ मे भयत्र तत्थगए Feri free वंद मंसइ २ ता सीहासण वरंसि पुरत्थाभिमुहे सणसणे ॥६॥ (जम्बूद्वीप पत्ति ) २८३ ने सू० इन्द्र. सी० सिहासन थी. प्र० उठे. उडी ने. पा० पावड़ी पगरखी मूके. मूकी ने. ए० एक शाटिक अखंड आखो वस्त्र तेहनों उत्तरासंग खत्रे ऊपर कांख ने नीचे वस्त्र राखे उत्तरा संय करे. करी नं. ० हाथ जोड़ीं. कमल डोडा ने श्राकारे अग्र हाथ के जेहनों एहवो थको. ति at करने साम्हो स० सात आठ पगली. अ० जाई जाई ने, वा० डाव गोडो ऊंचो राखे राखीनें. दा० जीमणो गोड़ो. ६० धरणीतल ने विषे. सा० स्थापी ने तिर त्रिवार मस्तक प्रते. ध० धरती तला ने विषे. नि० लगावे. लगावी नं. ई० ईपतु लिगारेक जंबो थई नं. क० कांक. तुं० हिरवा. सं० तेसें करी स्तम्भित भु० एहवी भुजा प्रते सा० संकोच संकोची ने. क० करतल हाथ ना तला. प० एकठा करी नें सि० मस्तके आवर्त रूप. म० मस्तक नें विषे. ० अंजलि करी नें. ए इम कहे स्तुति करे. न नमस्कार थावो. ए० वाक्यालंकारेअरिहन्त ने भ० भगवन्त ज्ञानवन्त ने आ० धर्म नी आदि करण हारा ने ती यार तीर्थ स्थापन करणवाला नें. स० स्वयमेव ज्ञान प्राप्त करण वाला नें. पुः पुरुषोत्तम ने. पु० पुरुष ने चिषे पुण्डरीक नी उपमावाला ने पु० पुरुषों में गन्धहस्ती नी उपमावाला ने लो० लोकोत्तम ने लोकनाथ ने. लो० लोक हितकारी नं. में दीपक समान नं. लो० लोक में प्रद्योत करणवाला ने अ० चन्नु दाता ने भ० मोक्ष मार्ग दाता ने स० शरण दाता ने बो० सम्यक्त्व रूप बोध देशवाला ने ध० धर्म देवाला ने ० धर्मनाक नं. ६० धर्म सारधि ने ध० धर्म में चातुरन्त चक्रवर्ती ने दी संसार समुद्र में द्वीप समान ने स० शरणागत आधार भूत ने अप्रतिहत केवल ज्ञान केवल दर्शन धारण करावाला ने वि० छद्मस्थपणा रहित ने. जि० राग द्वेष नों जय करणवाला ने तथा करावया वाला ने ति० संसार समुद्र थकी तिरण तत्वज्ञान जाणण वाला ने तथा चतावण वाला नें बालाने तथा निवृत्त करावण वाला नें. स० सर्बज्ञ पु० पुरुष सिंह ने लो० लोकां च० ज्ञान रूप अभय दाता में. जी० संयम रूप जीव दाता नं. घर धर्मोपदेश करण वाला ने. वाला ने तथा तारण वाला ने चु० स्व मु० स्वयं अष्ट कमी की नियुक्त हों सर्वदर्शी ने सि० उपद्रवरहित, ध्यचल रोग अनन्त अन्य व्याध अपुनरागमन सिद्ध गति प्राप्त करण चाला में म० नमस्कार
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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