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________________ ७८ भ्रम विध्वंसनम्। अथ ए १० धर्म १० स्थविर कह्या। पिण सावद्य निरबद्य ओलखणा । अर्ने दान १० कह्या. ते पिण सावध निरवद्य पिछाणणा । धर्म अने स्थविर कह्या छै, पिण लौकिक लोकोत्तर दोन छै। जिन "जम्बूद्वीपपनत्ति' में ३ तीर्थ कह्या मागध. बरदाम. प्रभास. पिण आदरबा जोग नहीं तिम सावध धर्म स्थविर दान पिण आदरवा योग्य नहीं । सावध छांडवां योग्य छै । विवेकलोचने करी विचारि जोइजो। इति १७ बोल सम्पूर्ण। कोई कहे ६ प्रकारे पुण्य बंधे ए कह्यो छ। ते माटे पाठ कहे छ। .. नव विहे पुणणे प० तं० अण्ण पुगणे. पाणपुरणे. लेणपुणणे. सयणपुराणे वत्थपुण्णे. मणपुणणे. वयपुराणे. कायपुराणे. नमोकारपुगणे। (ठाणांग ठाणाह न० नत्र प्रकार पुगय परूप्या. ते ते कहे छै. अ. पात्र ने विषे अन्नादिक दीजे ते थकी तीर्थ कर नामादिक पाप प्रकृति नो बंध तेह थको अनेरा ने देवो ते अनेरी प्रकृति नो बंध. पा. तिम हिज पाणो नों देवो. ल. वर हाटादिक नो देवो. स० संथारादिक नों देवो. व० वस्त्र नों देवो म० गुणवन्त ऊपर हर्ष. बवन नी प्रशंसा. का० पर्युपालना नों करिखो. करवो. अथ ही नब प्रकार पुणध सबने कह्यो । निरवद्य छै। मन. वचन काया, पुण. नमस्कार पुण पिण लपूने का। पिण मन. वचन. काया. निरवद्य प्रवर्तायां धुणा छ । स्याना में पुणध नहीं। तिम बीजा पिण निरवन प्रवर्तायां पुणय छै । साब में पुणध नहीं। कोई कहे अनेरा ने दोधा अनेरी पुलाय प्रकृति छै। तिण रे लेखे शिण ही ने दीधां पाप नहीं । अने जे टका में कह्यो पान ने विषे जे अन्नादिक नो देवो. नेह यकी तीर्थङ्करादिक पुणय प्रकृति नों बंध, तो आदिक शब्द में तो वयालीमुइ ४२ पुण्य प्रकृति आई। जिम ऋपभादिक कहिवे चौबीसुइ तीर्थङ्कर आया । गोतमादिक साधु कहिवे २४ हजार हि आया। प्राणातिपातादिक पाप
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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