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मिथ्यात्वि क्रियाऽधिकारः।
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भादरतां सामायकपोषा करतां मातापिता वर्जे तो तिणरे लेखे धर्म करणो नहीं। अने सामायकादि करे तो अविनीत थयो ते अवगुण हुवे तेहथी तो धर्म हुवे नहीं। इम कह्यां पाछो सूधो जबाब न आवे जब अकबक बोले मतपक्षी हुवे ते लीधी टेक छोड़े नहीं । अने न्याय विचारी ने खोटी टेक मिथ्यात्व छांडी साँचो श्रद्धा धारे ते न्यायवादी हलुकम्मी उत्तम जीव जाणवा । डाहा हुवे तो विचारि जोइजो
इति ३० बोल सम्पूर्ण। इति मिथ्यात्वि क्रियाऽधिकारः।