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________________ भ्रम विध्वंसनम् । उपजावि जेहने छै तेणेकरी अ० अल्प थोड़ो जीवनो विनाश अनें समारंभ जीवने परितापरूप छै जेहनें तेणेकरी. वि० वृत्ति आजीविका क० करतां धका. व० घणा वर्ष लगी आयुषो जीवितव्यपाले एहवो आयुषो प्रतिशलीने का० काल मरण ना अवसर ने विषे कालमरण करो ने अ० घणा ठाम छै तेमाही अनेरो कोई एक. वा० व्यन्तरना देवलोक रहिवाना ठाम ने विषे दे० देवतापण उ० उपपात सभाइ उपजीवो लहै तं० गतिजाययो अायुषानी स्थिति उपपात सर्ब पूर्वली परै ण. एतलो विशेष ठि० स्थिति चौदह सहस्र वर्ष लगी हुई। अथ इहां तो भद्रकादि घणा गुण कह्या । सहजे क्रोधमान मायालोभ पतला अल्प इच्छा अल्प आरंभ अल्प समारंभ एहवा गुणा करि देवता हुवे छै । तिवारे कोई कहे एतला गुणा में कह्या जे मातापिता रो बचन लोपै नहि ए पिण गुणामें कह्यो ते गुणइज छै। पिण अवगुण नहीं । अवगुण हुवे तो गुणामें आणे नहीं । एपिण गुणा में कह्यो। इम कहे तेहनो उत्तर--अहो महानुभावो ! ए गुण नहीं ए तो प्रतिपक्ष वचन छे। जे इहां इम कह्यो सहजे पतला क्रोध मान माया लोभ, ए क्रोध. मान माया लोभ पतला थोड़ा ते तो अवगुणइज छै। थोड़ा अवगुण छै पिण क्रोधादिक तो गुण नहीं पिण प्रतिपक्ष बचने करि ओलखायो छै। पतला क्रोधादिक कह्या तिवारे जाडा क्रोधादिक नहीं, एगुण कह्या छै। वली कह्यो अल्प इच्छा अल्प आरंभ अल्प समारंभ ए पिण प्रतिपक्ष वचने करी ओलखायो छै। परं अस्स आरंभ अल्प समारंभ अल्प इच्छा कही। तिवारे इम जाणीई जे घणी इच्छा नहीं ए गुण छै । एपिण प्रतिपक्ष वचने ओलखायो छै । तिम ए पिण कह्यो मातापिता रो विनीत मातापिता रो वचन लोपै नहीं. एपिण प्रतिपक्षे वचने करि ओलखायो छै. जे मातापिता रा विनीत कह्या । तिवारे इम जाणीई मातापिता रा अविनीत नहीं क्षुद्र नहीं अयोग्यता न करे कजियाखोड़ वथोकड़ा खंडवंड नहीं एगुण छ। एपिण प्रतिपक्ष वचन छै। अनें जो मातापिता रो विनीत तेहीज गुणथाय तो तिणरे लेखे अल्प इच्छा अल्प अरंभ अप समारंभ ए पिण गुण कहिणा। जिम थोड़ो आरंभ कह्यां घणों आरंभ नहीं इम जाणीइ। तिस मातापिता रा विनीत कह्यां अविनीत कजियाखोड नहीं. इम जाणिये। अगे जो मातापिता रा विनीत कह्या-तेहिज गुण थायसे तो इहां इभ को मातापितारो वचन उल्लंधे नहीं। तिणरे लेखे एपिण गुण कहिणो। जो ए गुण छै तो धर्म करता मातापिता वर्जे, अने न माने तो ए वचन लोप्पो ते माटे तिणरे लेखे अवगुण कहिणो। साधुपणो लेतां श्रावक पणूं
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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