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________________ श्रावक जीवन-दर्शन/१ प्रीतिमती के मुख से इन वचनों को सुनकर वह बालक बीमार की तरह एकदम मूच्छित हो गया। बालक की इस दुर्दशा को देखकर उसकी माता भी भयंकर दुःख से मूच्छित होकर भूमि पर ढल पड़ी। दृष्टिदोष अथवा दिव्यदोष की शंका से तुरन्त ही आस-पास के लोग जोर से चिल्लाने लगे "हाय ! माता और पुत्र को एकदम क्या हो गया ?" थोड़ी ही देर में मन्त्री आदि के साथ राजा वहाँ उपस्थित हो गया और शीतल उपचार करने लगा। कुछ ही क्षणों में बालक एवं रानी की मूर्छा दूर हो गयी। दोनों होश में आ गये । पुनः चारों ओर खुशहाली छा गयी और पुनः उत्सवपूर्वक राजपुत्र को अपने भवन में ले गये। उस दिन राजपुत्र एकदम स्वस्थ रहा। उसने पूर्व की तरह ही स्तनपान आदि भी किया। परन्तु दूसरे दिन स्वस्थ होने पर भी अरुचि वाले की तरह उसने दुग्धपान भी नहीं किया। चौविहार के पच्चक्खाण करने वाले की तरह उसने औषधि भी नहीं ली। बालक की इस चेष्टा से उसके माता-पिता, मंत्री तथा नगर-जन आदि सभी दुःखी हो गये एवं मंत्री आदि मूढ़ हो गये। सभी चिन्तातुर होकर सोचने लगे। तभी मध्याह्न समय में बालक के पुण्य से आकाशमार्ग से एक मुनि वहाँ आये। सर्वप्रथम परम प्रीति से उस बालक ने तथा उसके बाद राजा आदि ने उन महात्मा को प्रणाम किया। तत्पश्चात् राजा ने पूछा, "भगवन्त ! इस बालक ने सब कुछ खाना-पीना क्यों छोड़ दिया ?" . राजा की बात सुनकर मुनिराज ने कहा, "हे राजन् ! इस बालक को कोई शारीरिक पीड़ा आदि नहीं है, परन्तु इसे जिनप्रतिमा (प्रभु) के दर्शन करायो, तभी यह बालक दूधपान करेगा।" मुनिराज के वचनों को सुनकर उस बालक को जिनमन्दिर ले जाया गया और उसे प्रभु के दर्शन-वंदन कराये गये। उसके बाद वह बालक पूर्ववत् स्तन-पान आदि करने लगा। बालक की इस प्रवृत्ति को देख सभी आश्चर्य करने लगे। पुनः राजा ने मुनिराज से पूछा, "यह कैसा चमत्कार !" मुनिराज ने कहा- "इस बात को समझने के लिए मैं इसका पूर्वभव सुनाता हूँ।" इसे ध्यानपूर्वक सुनो। पुरिका नाम की नगरी में दीन-दुःखियों पर दया वाला और शत्रुओं पर क्रूर दृष्टि वाला 'कृप' नाम का राजा था। उस नगरी में सज्जन पुरुष अधिक थे और दर्जन पुरुष बहत ही सज्जन पुरुष अधिक थे और दुर्जन पुरुष बहुत ही थोड़े थे। उस राजा के चित्रमति नाम का बुद्धिशाली मंत्री था। उस मंत्री के कुबेर समान समृद्ध वसुमित्र नाम का मित्र था। वसुमित्र के सुमित्र नाम का मित्र था जो नाम में एक अक्षर न्यून किन्तु समृद्धि में एक समान था। · सुमित्र के 'धन्य' नाम का एक सेवक था, जो उत्तम कुल का होने से सुमित्र को पुत्र समान मान्य था। एक बार वह धन्य स्नान के लिए सुन्दर कमल वाले सरोवर के निकट पहुंचा। धन्य उस
SR No.032039
Book TitleShravak Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasensuri
PublisherMehta Rikhabdas Amichandji
Publication Year2012
Total Pages382
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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