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________________ श्रावक जीवन-दर्शन / ३३ "जो प्राणी भूले बिना नित्य नवकार गिनकर ग्रन्थिसहित ( गंठसी) पच्चक्खाण करते हैं, उन्हें धन्य है, क्योंकि वे ग्रन्थिसहित पच्चक्खाण करते हुए अपने कर्म की गाँठ को भी छोड़ते हैं ।" "यदि मोक्षगमन की इच्छा हो तो ग्रन्थिसहित ( गंठसी) पच्चक्खारग का अभ्यास करो ।” शास्त्रज्ञों ने इसे अनशन के सदृश पुण्योपार्जन का उपाय बतलाया है । रात्रि में चारों प्रकार के आहार का त्याग करने वाला और दिन में बैठकर एक ही बार भोजन के साथ तांबूल आदि लेकर मुखशुद्धि कर जो गंठसी (ग्रन्थिसहित ) पच्चवखारण करता है, उसे एक मास में उनतीस उपवास और दो बार भोजन ( बियासना) करने वाले को अट्ठाईस चौविहार उपवास का लाभ मिलता है, इस प्रकार वृद्ध पुरुष कहते हैं । भोजन, तांबूल, पानी आदि के उपभोग में प्रतिदिन दो घड़ी जितना समय लगता है, अतः एक बार भोजन करने वाले को एक माह में उनतीस उपवास और दो बार भोजन करने वाले को ( प्रतिदिन चार घड़ी भोजन - पानी में जाने से ) अट्ठाईस उपवास का लाभ मिलता है । पद्मचरित्र 'कहा है जो प्राणी नियम से प्रतिदिन दो ही बार भोजन करता है, ( उसे प्रतिदिन भोजन में चार घड़ी की सम्भावना होने से ) अट्ठाईस उपवास का लाभ मिलता है । जो व्यक्ति प्रतिदिन दो घड़ी तक चारों प्रकार के आहार का त्याग करता है, उसे एक मास - में 'एक उपवास का फल मिलता है । अगर वह व्यक्ति अन्य देव का भक्त हो तो वह दस हजारं वर्ष के आयुष्य को बाँधता है, जिनेश्वर निर्दिष्ट उतने ही तप से वह कोटि पल्योपम प्रमाण देवायु का बंध करता है । इस प्रकार प्रतिदिन एक, दो या तीन मुहूर्त की वृद्धि करने से एक उपवास, दो उपवास और तीन उपवास का फल बताया है । जो व्यक्ति यथाशक्ति त्याग करता है, उसको वैसा फल मिलता है । इस प्रकार युक्तिपूर्वक पूर्वकथित गंठसी आदि पच्चक्खारण का फल समझना चाहिए । जो भी पच्चक्खाण किया हो उसे बारंबार याद करना चाहिए और जो पच्चक्खाण लिया हो उसका काल पूरा होने पर 'मेरा अमुक पच्चक्खाण पूरा हुआ' - इस प्रकार याद करना चाहिए। भोजन के समय भी उसे पुनः याद करना चाहिए अन्यथा पच्चक्खाण - भंग की सम्भावना रहती है । प्रशन, पान, खादिम व स्वादिम का स्वरूप ( १ ) प्रशन - भूख को शान्त करने में समर्थ अन्न, पक्वान्न, मंडक तथा सत्तू आदि प्रशन कहलाता है । (२) पान - छाछ, पानी, मदिरा आदि पेय पदार्थं । (३) खादिम - सभी प्रकार के फल, ईख, होला, सुखड़ी आदि खाद्य । (४) स्वादिम–सूठ, हरड़े, पीपर, काली मिर्च, जीरा, अजमा, जायफल, जावित्री, कसेला,
SR No.032039
Book TitleShravak Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasensuri
PublisherMehta Rikhabdas Amichandji
Publication Year2012
Total Pages382
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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