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________________ श्राद्धविषि/२७ दूध-वही की काल मर्यादा कच्चे (बिना गर्म किये हुए) दूध, दही में मूग, उड़द, चंवले, आदि द्विदल गिरते हैं तो उसमें तत्काल त्रस जीवों की उत्पत्ति हो जाती है। दो दिन के बाद के दही में भी त्रस जीव उत्पन्न हो जाते हैं । - 'दो दिन' के बदले 'तीन दिन के बाद'-यह पाठ बराबर नहीं लगता है, क्योंकि योगशास्त्र में हेमचन्द्र सूरिजी म. ने भी दो दिन का ही उल्लेख किया है। ..द्विदल का स्वरूप-जिस धान्य को पीलने से तैल नहीं निकलता हो और जिसके बराबर दो टुकड़े (फाड़) हो सकते हों उसे द्विदल कहते हैं, परन्तु जिसमें से तैल निकलता हो उसे द्विदल नहीं कहते हैं। अन्य अभक्ष्य-बासी द्विदल, नरम पूड़ी तथा केवल जल में पकाये बंटी, मकाई की घाट आदि (दूसरे दिन अभक्ष्य हैं) तथा अन्य भी सड़ा हुआ धान्य, फूलन वाले चावल, पक्वान्न आदि अभक्ष्य होने से त्याज्य हैं । (बाईस अभक्ष्य और बत्तीस अनन्तकाय का स्वरूप ग्रन्थकार द्वारा विरचित श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र की टीका से समझ लें।) बहुत बीज और जीवों से व्याप्त होने आदि के कारण बैंगन, मिट्टी, टिंबरु, जामुन, बिल्वफल, मार्द्र पीलु पके करमदे, गुंदीफल, पीचू, महुडे, आम्र-महोर, होला, बड़े बोर, कच्चे कोठीबड़े, खसखस, तिल तथा सचित्त नमक आदि का भी अभक्ष्य की तरह त्याग करना चाहिए। खून आदि के समान जिनका भद्दा रंग हो ऐसे पके गोलक, पके कंकोडे, पनस फल तथा जिस देश में जो-जो लोकविरुद्ध हो ऐसे कादतुबक, कुष्मांड (कुम्हडा) आदि का भी त्याग करना चाहिए। उन वस्तुओं का त्याग नहीं करने से जिनधर्म की अपभ्राजना का प्रसंग आता है। अभक्ष्य और अनन्तकाय वस्तु अन्य किसी के घर में प्रासुक (अचित्त) मिले तो भी सर्वथा त्याग करना चाहिए, क्योंकि उसका त्याग नहीं करने से हृदय में निर्दयता पैदा होती है और उसके खाने वालों में भी वृद्धि होने की सम्भावना रहती है। इसी कारण से उबाले हुए शुष्क अनन्तकाय, पकाये गये आर्द्रक सूरण बैंगन आदि का भी गलत परम्परा को रोकने के लिए त्याग करना चाहिए। मूली के तो पाँचों अंग त्याज्य हैं। सूठ और हल्दी आदि तो नाम और स्वाद में परिवर्तन हो जाने से कल्प्य हैं । अचित्त जल की मर्यादा ___ गर्म पानी तीन बार उफान आने के पूर्व तक मिश्र गिना जाता है। पिंडनियुक्ति में कहा है "जब तक उबाले हुए पानी में तीन बार उफान न आ जाय तब तक वह पानी मिश्र कहलाता है, उसके बाद अचित्त कहलाता है।"
SR No.032039
Book TitleShravak Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasensuri
PublisherMehta Rikhabdas Amichandji
Publication Year2012
Total Pages382
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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