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________________ श्रादविषि/२० उसके बाद स्वयं को दाद (एक प्रकार का चर्मरोग) आदि हो तो उस पर थूक घिसना चाहिए और शरीर के अवयवों की दृढ़ता के लिए हाथों से व्यायाम करना चाहिए। . • प्रातःकाल में पुण्यप्रकाशक होने से पुरुष अपना दाहिना हाथ और स्त्री अपना बायाँ हाथ देखे। • माता-पिता आदि वृद्धों को जो नमस्कार करता है, उसे तीर्थयात्रा का फल प्राप्त होता है, अतः प्रतिदिन माता-पितादि को नमस्कार करना चाहिए। जो वृद्धों की सेवा नहीं करता है, उससे धर्म दूर रहता है, जो राजा की सेवा नहीं करता है, उससे धन दूर रहता है और जो वेश्या का संग करता है, उससे आनन्द दूर रहता है। पच्चक्खाण का संकल्प • प्रतिक्रमण करने वाले को पच्चक्खाण के पूर्व चौदह नियम धारण करने चाहिए। • जो प्रतिक्रमण नहीं करता है उसे भी सूर्योदय से पूर्व चौदह नियम धारण करने चाहिए और अपनी शक्ति के अनुसार नवकारसी, गंठसी, एकासना, बियासना आदि तथा देशावगासिक का पच्चक्खाण करना चाहिए। • सद्गुरु के पास विवेकी पुरुष को सम्यक्त्व सहित श्रावक के बारह व्रतों का स्वीकार करना चाहिए। देशविरति के पालन से सर्वविरति की प्राप्ति सुलभ बनती है। विरति महाफलदायी है और विरतिरहित को निगोद के जीवों की तरह मन, वचन और काया के व्यापार का अभाव होने पर भी भयंकर अशुभ कर्म का बंध होता है। कहा भी है - भावयुक्त जिस भव्य प्राणी ने थोड़ी भी पाप से विरति की है, उसे देवता भी चाहते हैं, क्योंकि देवता विरतिधर्म के पालन में असमर्थ हैं। - • कवलाहार नहीं करने पर भी विरतिपरिणाम के प्रभाव के कारण एकेन्द्रिय जीव उपवास का फल प्राप्त नहीं करते हैं । • मन, वचन और काया से पाप-प्रवृत्ति नहीं करने पर भी एकेन्द्रिय जीव अनन्तकाल एकेन्द्रिय अवस्था में रहते हैं, वह अविरति का ही फल है। ... • पूर्व भव में यदि विरतिधर्म का पालन किया होता तो तिर्यंचों को चाबुक, अंकुश और वध, बन्धन, मारण आदि सैकड़ों दु:ख नहीं होते। अविरति का तीव्र उदय होने पर गुरु-उपदेश आदि का योग मिलने पर भी देवता आदि की तरह विरति की प्राप्ति नहीं होती है। जैसे-श्रेणिक महाराजा क्षायिक सम्यग्दृष्टि होने पर भी अविरति के उदय के कारण प्रत्यक्ष भगवान महावीर प्रभु की वाणी का श्रवण करने पर भी कौए आदि के मांस के त्याग का भी पच्चक्खाण नहीं कर सके। ___ पच्चक्खाण (विरति) से ही अविरति जीती जाती है। विरति का पालन अभ्यास से साध्य है। लेखन, पठन, संख्यान, गान, नृत्य आदि सभी कलाभों में अभ्यास से कुशलता आती है, यह बात सभी के अनुभव-सिद्ध है। कहा भी है
SR No.032039
Book TitleShravak Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasensuri
PublisherMehta Rikhabdas Amichandji
Publication Year2012
Total Pages382
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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