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________________ श्राद्धविषि/१७ नवकार के एक अक्षर से सात सागरोपम के पाप नष्ट होते हैं। नवकार के एक पद से पचास सागरोपम और सम्पूर्ण नवकार से पांच सौ सागरोपम के पाप नष्ट होते हैं। विधिपूर्वक जिनेश्वर भगवन्त की पूजा करके जो पुण्यात्मा एक लाख नवकार का जाप करती है, वह आत्मा तीर्थंकरनामगोत्र का बन्ध करती है--इसमें कोई सन्देह नहीं है। आठ करोड़ आठ लाख आठ हजार आठ सौ आठ नवकार गिनने वाला प्राणी तीसरे भव में मोक्षपद प्राप्त करता है। नवकार का चमत्कार जुआ आदि व्यसनों में आसक्त बने शिवकुमार को उसके पिता ने मृत्यु के समय सलाह दी कि आपत्ति के समय नवकार गिने। पिता की मृत्यु के बाद दुर्व्यसनों के जाल में फंसा शिवकुमार निर्धन हो गया। धन के लोभ में वह किसी दुष्ट योगी के जाल में फंस गया। योगी के कहने से वह शिवकुमार उत्तरसाधक बना और चौदस की रात्रि में श्मशान भूमि में आकर हाथ में तलवार लेकर योगी की सूचनानुसार मृतक-देह (मुर्दे) के पैर में मालिश करने लगा। उसी समय मन में भय पैदा होने से पिता की हितशिक्षा को याद कर नवकार मंत्र का स्मरण करने लगा। दो-तीन बार वह शव शिवकुमार को मारने के लिए उछला, परन्तु नवकार के प्रभाव से शिवकुमार का बाल भी बाँका नहीं हुआ। अन्त में, उस शव ने योगी का ही वध कर डाला। वह योगी स्वर्ण-पुरुष के रूप में रूपान्तरित हो गया। नवकार के प्रभाव से शिवकुमार को स्वर्ण-पुरुष की प्राप्ति हुई। महाऋद्धिमान् शिवकुमार ने अनेक जिनमन्दिरों का निर्माण कर आत्मकल्याण किया। नवकार से पारलौकिक फल भरुच के पास किसी वन में किसी शिकारी ने अपने बाणप्रहार से एक चील को बींध डाला। वह चील नीचे गिर पड़ी। उसी समय पास में रहे साधु भगवन्त ने उसको नवकार मंत्र सनाया। नवकार के प्रभाव से वह चील मरकर सिंहल देश के राजा की पूत्री बनी। वह कन्या यौवन वय को प्राप्त हुई। एक बार छींक आने पर पास में खड़े सेठ ने 'नमो अरिहंताणं' कहा। इसे सुनते ही राजकुमारी को जातिस्मरण ज्ञान हो गया। जातिस्मरण ज्ञान से वह अपने पूर्व भव को जानकर माल से भरे पाँच सौ वाहनों के साथ भरुच आई और उस वन में जहाँ उसकी मृत्यु हुई थी उसने 'शमलो विहार' नाम का मुनिसुव्रतस्वामी भगवान का मन्दिर बनवाया। इस कारण उठते समय नमस्कार-महामंत्र का स्मरण करना चाहिए और उसके बाद धर्म-जागरिका करनी चाहिए। - - धर्म-जागरिका _ 'मैं कौन हँ ?' 'मेरी कौनसी जाति है ?' 'मेरा कौनसा कुल है ?' 'मेरे देव कौन हैं ?' 'मेरे गुरु कौन हैं ?' 'मेरा धर्म कौनसा है ?' 'मेरे कौनसे अभिग्रह हैं ?' 'मेरी कौनसी अवस्था है ?' ____ 'मैंने अपना कौनसा कर्तव्य पालन किया है और कौनसा नहीं ?' 'शक्ति होते हुए भी प्रमाद के वश होकर किन कर्तव्यों का पालन नहीं कर रहा हूँ ?' 'मेरे विषय में अन्य लोगों का क्या
SR No.032039
Book TitleShravak Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasensuri
PublisherMehta Rikhabdas Amichandji
Publication Year2012
Total Pages382
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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