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________________ श्राद्धविधि/१६ जाप आदि का फल पूजा से कोटि गुणा लाभ स्तोत्र में, स्तोत्र से कोटि गुणा लाभ जाप में, जाप से कोटि गुणा लाभ ध्यान में और ध्यान से कोटि गुणा लाभ लय में होता है। (पूजा की पराकाष्ठा स्तोत्र में, स्तोत्र की पराकाष्ठा जाप में, जाप की पराकाष्ठा ध्यान में और ध्यान की पराकाष्ठा लय में है।) ध्यान की सिद्धि के लिए जिनेश्वर भगवन्त के जन्म आदि कल्याणक-भूमियों में जाना चाहिए अथवा जिस स्थान में ध्यान में स्थिरता आती हो ऐसे एकान्त स्थान में जाना चाहिए। ध्यानशतक में कहा है-ध्यान के लिए साधु पुरुषों को वास्तव में स्त्री, पशु, नपुसक तथा कुशील से रहित एकान्त-स्थल का आश्रय करना चाहिए, निश्चल मन एवं स्थिर योग वाले मुनि के लिए तो गाँव, नगर, वन और एकान्त स्थल में कोई विशेष भेद नहीं है। जहाँ अपने मन, वचन और काया के योगों की समाधि रहती हो और जहाँ जीवों का घात नहीं होता हो ऐसे स्थल में रहकर ध्यान करना चाहिए। ध्यान के लिए काल (समय) भी वही उचित है, जिस समय मन, वचन और काया के योगों की समाधि रहती हो। ध्यान हेतु मन की स्थिरता के लिए दिन-रात का कोई विशेष विधान नहीं है। • शरीर की जिस अवस्था में ध्यान शक्य हो, उस अवस्था में रहकर ध्यान करना चाहिए। सोते हुए, बैठे-बैठे अथवा खड़े-खड़े का कोई एकान्त नियम नहीं है। देश-काल की सभी अवस्थाओं में उत्तम मुनियों ने केवलज्ञान लक्ष्मी को प्राप्त किया है और सभी पापरहित बने हैं अतः ध्यान के लिए शास्त्र में देश-काल व चेष्टादि का कोई विशेष नियम नहीं है। जिस प्रकार और जिस अवस्था में अपने मन, वचन और काया के योगों की समाधि रहती हो, वैसा प्रयत्न करना चाहिए। नवकार मंत्र की महिमा यह नवकार मंत्र इस लोक और परलोक दोनों में उपकारी है। 'महानिशीथ सूत्र में कहा है "भाव से नमस्कार मंत्र का स्मरण करने से चोर, सिंह, सर्प, जल, अग्नि, बंधन, राक्षस, युद्ध तथा राजभय आदि नष्ट हो जाते हैं।" अन्यत्र भी कहा है-पुत्र आदि के जन्म-समय भी नवकार गिनना चाहिए, जिससे पुत्र ऋद्धिमान् होता है । मृत्यु के समय भी नवकार सुनाना चाहिए, जिससे मृतक सद्गतिगामी बनता है। आपत्ति के समय भी नवकार का स्मरण करना चाहिए। नवकार प्रभाव से सैकड़ों आपत्तियाँ दूर हो जाती हैं। ऋद्धिमान् को भी नवकार का स्मरण करना चाहिए, जिससे उसकी ऋद्धि का विस्तार हो।
SR No.032039
Book TitleShravak Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasensuri
PublisherMehta Rikhabdas Amichandji
Publication Year2012
Total Pages382
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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