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________________ * पंचम - प्रकाश * * वार्षिक कृत्य चातुर्मासी कृत्य कहने के बाद अब वार्षिक कृत्य कहते हैं । प्रतिवर्ष कम से कम एक बार निम्नलिखित ग्यारह कृत्य अवश्य करने चाहिए । ( 1 ) (2) (3) ( 4 ) (5) ( 6 ) ( 8 ) चतुविध - संघ की पूजा । साधर्मिक - भक्ति । यात्रा त्रिक - तीर्थयात्रा, रथयात्रा और अष्टाह्निक महोत्सव | जिनमन्दिर में स्नात्र महोत्सव | देवद्रव्य की वृद्धि --माला । ( 7 ) रात्रि में धर्म जागरिका । महापूजा श्रुतज्ञान की विशेष पूजा । ( 10 ) जिनशासन प्रभावना ( 9 ) उद्यापन ( 11 ) आलोचना | ये धर्मकृत्य श्रावक को यथाशक्ति अवश्य करने चाहिए । (१) संघपूजा अपने वैभव तथा कुल आदि के अनुसार अत्यन्त प्रादर व बहुमान के साथ प्राधाकर्म, क्रीत आदि दोषों से रहित साधु-साध्वी के योग्य वस्त्र, कम्बल, प्रोघा, सूत, ऊन, पात्र, पानी आदि रखने के चमड़े के बर्तन, तु बड़ा ग्रादि पात्र, दण्ड, दण्डी, सुई, काँटे निकालने हेतु चिमटा, कागज, दवात, कलम, पुस्तक आदि वस्तु गुरु को देनी चाहिए। दिनकृत्य में भी कहा है “वस्त्र, पात्र, पाँचों प्रकार की अपवादिक पुस्तक, कम्बल, पाद-पोंछनक, दण्ड, संथारा, शय्या तथा अन्य भी औधिक और औपग्रहिक उपधि मुहपत्ती, दण्ड आदि जो संयम के लिए सहायक हो, देना चाहिए ।" कहा भी है- "जो वस्तु संयम के लिए उपकारी हो, उसे उपकररण कहते हैं उससे अधिक रखना अधिकरण कहलाता है । प्रयतनापूर्वक वस्तुओं का उपयोग करने वाला असंयत कहलाता है ।" इसी प्रकार प्रातिहारिक, पीठ, फलक, पाटी आदि भी संयम के लिए उपकारी होने से सभी साधुत्रों को श्रद्धापूर्वक देनी चाहिए । से - प्रशन, वस्त्र तथा सुई ये चार-चार श्रीकल्प में सुई प्रादि को भी उपकरण कहा है। जैसे- अ वस्तुएँ अर्थात् 12 वस्तुएँ ।
SR No.032039
Book TitleShravak Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasensuri
PublisherMehta Rikhabdas Amichandji
Publication Year2012
Total Pages382
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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