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________________ श्रावक जीवन-दर्शन/१६३ जिस प्रकार सागर बड़वानल को कुछ जल देकर खुश करता है, उसी प्रकार सर्वस्व हरण करने में शक्तिमान शत्रु को बुद्धिमान पुरुष थोड़ा सा दान देकर संतुष्ट कर देते हैं। हाथ में रहे काँटे से जिस प्रकार पैर में लगे काँटे को बाहर निकाल सकते हैं, उसी प्रकार बलवान शत्र को अन्य बलवान शत्रु से उखाड़ा जा सकता है। स्व-पर की शक्ति का विचार किये बिना जो किसी कार्य को उठाता है, वह मेघ की गर्जना से क्रोधित हुए शरभ (आठ पैर का जानवर जो सिंह से भी बलवान होता है) के समान है जैसे शरभ मेघ की गर्जना सुनकर उछल-उछल कर अपने ही अंग का विनाश करता है वैसे ही शक्ति का विचार नहीं करने वाला व्यक्ति भी क्लेश पाता है। जो कार्य पराक्रम से शक्य न हो उसे किसी उपाय से सिद्ध करना चाहिए। जिस प्रकार काकी (मादा काक) ने कनकसूत्र से काले सर्प को गिरा दिया। नाखून वाले और सींग वाले पशु, शस्त्रधारी व्यक्ति, नदी, स्त्री और राजकुल का कभी विश्वास नहीं करना चाहिए। 卐 पशु-पक्षियों से शिक्षा 9 सिंह से एक, बगुले से एक, मुर्गे से चार, कौए से पाँच, कुत्ते से छह और गधे से तीन शिक्षाएँ लेनी चाहिए। सिंह के समान एक ही छलांग में मनुष्य को छोटा या बड़ा कोई भी कार्य सर्व प्रकार के उद्यम से एकदम करना चाहिए। बगुले की तरह वस्तु का विचार करें। सिंह का पराक्रम करं। भेड़िये की तरह लूटें और खरगोश की तरह भाग जायें। सबसे पहले उठना, लड़ाई करना, भाइयों के साथ मिलकर खाना और स्त्री को अपने अधिकार में लेकर भोगना ये चार बातें मुर्गे से सीखें । एकान्त मैथुन, धृष्टता, अवसर आने पर गृह-संग्रह, अप्रमाद और अविश्वास ये पाँच बातें कौए से सीखनी चाहिए। मिलने पर अधिक खाना, थोड़े में सन्तोष, निद्रा, सहज जागृति, स्वामिभक्ति और शुरवीरता ये छह बातें कुत्ते से सीखनी चाहिए। ऊपर पड़े भार को वहन करन रना, ठण्डीगर्मी की परवाह न करना और हमेशा सन्तुष्ट रहना, ये तीन बातें गधे से सीखनी चाहिए। ___ इस प्रकार अन्य भी नीतिशास्त्र आदि में कही हुई सभी बातों पर सुश्रावक को अच्छी तरह से विचार करना चाहिए। कहा है-जो व्यक्ति हित-अहित, उचित-अनुचित और वस्तु-अवस्तु को स्वयं नहीं जानता है, वह बिना सींग का पशु संसार रूपी वन में परिभ्रमण करता है। जो मनुष्य बोलने, देखने, हँसने, खेलने, प्रेरणा करने, रहने, परीक्षा करने, व्यवहार करने, शोभा करने, अर्जन करने, दान करने, विशेष चेष्टा करने, पढ़ने, आनन्द करने और बढ़ने के विषय में कुछ भी नहीं जानता है, वह निर्लज्ज शिरोमणि क्यों जीता है ? जो मनुष्य स्व-पर स्थान में खाने, सोने, पहिनने, बोलने आदि के बारे में जानता है, वही मनुष्य विद्वानों में अग्रणी कहलाता है। + व्यवहार-शुद्धि आदि तीन के विषय में दृष्टान्त है विनयपुर नगर में धनवान वसुभद्र के धनमित्र नाम का पुत्र था। बाल्यकाल में ही मातापिता की मृत्यु हो जाने से और धन की हानि से गरीब होने के कारण वह दुःखी हो गया। युवा
SR No.032039
Book TitleShravak Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasensuri
PublisherMehta Rikhabdas Amichandji
Publication Year2012
Total Pages382
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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