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________________ श्रादविषि/४ . इस प्रकार वचन के रहस्य को नहीं समझने वाला मूर्ख व्यक्ति धर्म-प्राप्ति या धर्मोपदेश के लिए अयोग्य कहा गया है। (४) पहले से व्युद्ग्राहित व्यक्ति भी धर्म के लिए अयोग्य कहा गया है। जैसे--गोशाले के नियतिवाद से व्युद्ग्राहित व्यक्ति धर्मबोध के लिए अयोग्य कहे गए हैं। उपर्युक्त चारों दोषों से युक्त व्यक्ति धर्म के लिए अयोग्य कहे गये हैं । धर्म के लिए योग्य ... (१) जो तीव्र राग-द्वेष से रहित है और मध्यस्थ है, ऐसी भद्रक प्रकृति वाला व्यक्ति आर्द्रकुमार मादि की तरह धर्म के लिए योग्य कहा गया है। (२) हेय-उपादेय के भेद को समझने के लिए जो विशिष्ट बुद्धि वाले हैं, परन्तु पूर्वोक्त दृष्टान्त में कहे गए ग्रामीण युवक की तरह मूढ़ बुद्धि वाले नहीं हैं, ऐसे व्यक्ति धर्म के लिए योग्य कहे गये हैं। (३) न्यायमार्ग (व्यवहारशुद्धि के अधिकार में जिसका वर्णन किया जायेगा) में जिसको प्रीति है, ऐसे व्यक्ति धर्म के लिए योग्य कहे गये हैं। (४) अपने वचन में जो दृढ़प्रतिज्ञ हैं, किन्तु शिथिल नहीं हैं, ऐसे व्यक्ति धर्म के लिए योग्य कहे गये हैं। इन चारों गुणों में आगम में निर्दिष्ट श्रावक के इक्कीस गुणों का भी संग्रह हो जाता है। श्रावक के २१ गुण ___१. अक्षुद्र-गम्भीर हो किन्तु तुच्छ हृदय वाला नहीं हो। २. रूपवान-जिसकी पाँचों इन्द्रियाँ परिपूर्ण हों। ३. प्रकृतिसौम्य-स्वभाव से शान्त हो, पाप कर्म से दूर रहने वाला हो और सेवक वर्ग के लिए.सुखपूर्वक सेव्य हो। ४. लोकप्रिय-दान, शील तथा विनय आदि से युक्त हो। ५. अक्रूर-जिसका चित्त ईर्ष्याग्रस्त न हो। । ६. भीर–पाप तथा लोकनिन्द्य कार्य करने में जिसे भय लगता हो। ७. प्रशठ-जो दूसरों को नहीं ठगता हो। ८. सदाक्षिण्य-दूसरे की प्रार्थना का भंग करने वाला न हो। ६. लज्जालु-अकार्य का त्याग करने वाला हो। १०. दयालु-सभी पर दया करने वाला हो। ११. मध्यस्थ-राग-द्वेष से रहित हो। अतः साम्यदृष्टि वाला होने से धर्म के बारे में बराबर विचार करके दोषों को त्यागने वाला हो।
SR No.032039
Book TitleShravak Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasensuri
PublisherMehta Rikhabdas Amichandji
Publication Year2012
Total Pages382
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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