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________________ 81. दूत होकर भी सन्देश को भूल जाय । 82. खाँसी का रोग होने पर भी चोरी करने जाय । 83. कीर्ति के लिए भोजन का बड़ा खर्चा रखे । 84. लोकप्रशंसा पाने हेतु प्रल्प भोजन करे । 85. अल्प भोज्य वस्तु में अतिरसिक बने । 86. कपटपूर्वक मीठा बोलने वालों के चंगुल में फँस जाय । 87. वेश्या के प्रेमी के साथ कलह करे । 88. दो की बातचीत में बीच में जाकर खड़ा हो जाय । 89. राजा की कृपा में स्थिरबुद्धि रखे । 90. अन्याय से धन आदि की वृद्धि करे । 91. धनहीन होने पर भी धन से होने वाले कार्यों को करे । 92. लोक में गुप्त बात प्रगट करे । 93. यश के लिए अज्ञात व्यक्ति को साक्षी दे । 94. हितैषी के साथ ईर्ष्या करे । 95. सर्वत्र विश्वास रखे । 96. लोकव्यवहार को न समझे । 97. भिक्षुक होकर गर्म रसोई की अपेक्षा रखे । 98. गुरु होकर क्रियापालन में शिथिल रहे । 99. कुकर्म में शर्म न रखे । 100. हँसी-मजाक करते बोले । श्रावक जीवन-दर्शन / १८६ ये मूर्ख के 100 लक्षण हैं । इस प्रकार अन्य भी अपयश करने-कराने वाली क्रियाओं का त्याग करना चाहिए। विवेक-विलास में कहा है- "सभा में जंभाई, छींक, डकार, हँसी आदि आ जाय तो मुँह पर कपड़ा लगाना चाहिए। सभा में नाक की सफाई और हाथ को मोड़ने की क्रिया नहीं करनी चाहिए ।" सभा में पर्यस्तिका नहीं करनी चाहिए तथा पैर लम्बे नहीं करने चाहिए । निद्रा, विकथा आदि खराब क्रियाएँ भी सभा में नहीं करनी चाहिए । अवसर आने पर कुलीन पुरुष मुस्करा देते हैं परन्तु अट्टहास और प्रतिहास्य सर्वथा अनुचित है । अपने अंग को न बजायें । तिनकों को न तोड़ें, भूमि पर आलेखन न करें, नाखूनों से दाँतों व नाखूनों का घर्षरण न करें । भाट की प्रशंसा सुनकर गर्व न करें, परन्तु बुद्धिमान की प्रशंसा से अपने गुरण का निश्चय करें । बुद्धिमान पुरुष को दूसरे के वाक्यों में रही विशेष उक्ति को अवश्य धारण करना चाहिए । नीच व्यक्ति के द्वारा अपने कहे गये वाक्य को दोहराना नहीं चाहिए। तीनों कालों में जो बात एकदम निश्चित न हो उसे 'यह ऐसा ही है'' - इस प्रकार स्पष्ट नहीं कहना चाहिए ।
SR No.032039
Book TitleShravak Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasensuri
PublisherMehta Rikhabdas Amichandji
Publication Year2012
Total Pages382
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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