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________________ श्रावक जीवन-दर्शन/१७७ कोई अपराध हो गया हो तो स्त्री को एकान्त में समझाना चाहिए। धनहानि, धनवृद्धि और घर की गुप्त बात उसके सामने नहीं कहनी चाहिए। निष्कारण क्रोध कर स्त्री को इस प्रकार अपमानजनक शब्द नहीं कहने चाहिए कि"मैं दूसरी स्त्री से शादी कर लूगा।" ऐसा कौन मूर्ख होगा जो पत्नी पर के क्रोधादि के कारण दूसरा विवाह कर दो पत्नियों के संकट में गिरेगा? कहा है-"दो स्त्रियों के अधीन रहा पुरुष घर से भूखा ही बाहर जाता है, घर में जल की बूद भी नहीं पाता है और बिना पैर धोये ही वह सो जाता है।' कारागृह में रहना अच्छा, परन्तु दो स्त्रियों का पति होना अच्छा नहीं है। यदि किसी कारणवशात दो स्त्रियों के साथ लग पड़े तो उन दोनों के पुत्रों पर समान दृष्टि रखनी चाहिए और किसी की बारी नहीं तोड़नी चाहिए। शोक्य स्त्री की बारी तोड़कर अपने पति के साथ कामभोग करने वाली स्त्री को चौथे व्रत में दूसरा अतिचार लगता है। स्त्री के भूल करने पर उसे इस तरह से समझा कि वह पुनः भूल न करे। अत्यन्त कुपित हो तो उसे स्नेह से समझाना चाहिए अन्यथा सोमभट्ट की पत्नी की तरह अचानक ही वह कुए में गिरने आदि के अनर्थ कर सकती है। अतः स्त्री के साथ सदैव कोमलता से ही काम लेना चाहिए, कठोरता से नहीं। पांचाल ऋषि ने कहा है-स्त्री के विषय में मृदुता ही योग्य है। मृदुता से ही स्त्री वश में होती है । मृदु व्यवहार से ही उसकी सर्वत्र सर्व कार्यों में सिद्धि देखी जाती है। यदि ऐसा न करें तो काम बिगड़ने के भी अनुभव हो जाते हैं। गुणहीन स्त्री हो तो उससे अत्यन्त सावधानीपूर्वक मृदुता से काम लेना चाहिए। जीवनपर्यन्त मजबूत बेड़ी के समान उस स्त्री से वैसे ही सावधानीपूर्वक काम लेकर घर चलाना चाहिए और हर तरह से निर्वाह करना चाहिए। ... "गृहिणी ही घर कहलाती है" इस उक्ति को सदैव याद रखना चाहिए। धनहानि की बात स्त्री को नहीं बतानी चाहिए क्योंकि वह उस बात को चारों ओर फैलाकर लम्बे समय से उपार्जित इज्जत को भी धूल में मिला देती है। धनवृद्धि की बात उसे करने से वह निरर्थक फालतू खर्च करने लग जाती है। . घर की गुप्त बात उसे कहने से वह उस बात को कोमल स्वभाव के कारण हृदय में धारण नहीं कर सकती। वह अन्य स्त्रियों को वह बात किये बिना नहीं रहती, जिसके परिणामस्वरूप भविष्य की योजनाएँ भी निष्फल हो जाती हैं। कदाचित् गुप्त बात जाहिर होने से राजद्रोह का संकट भी आ खड़ा होता है। अतः घर में स्त्री को प्रधानता नहीं देनी चाहिए।
SR No.032039
Book TitleShravak Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasensuri
PublisherMehta Rikhabdas Amichandji
Publication Year2012
Total Pages382
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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