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________________ श्रावविधि/१७६ कहा है-"प्रीतिवचन के समान कोई वशीकरण नहीं है, कला से श्रेष्ठ कोई धन नहीं है, हिंसा से बढ़कर अधर्म नहीं है और सन्तोष से श्रेष्ठ कोई सुख नहीं है।" अपने स्नान व शारीरिक सेवा, मालिश आदि में स्त्री को जोड़ना चाहिए। इस प्रकार करने से विश्वस्त बनी हुई निष्कपट प्रेम वाली वह अन्य अप्रिय काम नहीं करती है। देश, काल, कुटुम्ब और वैभव के उचित आभूषण उसे देने चाहिए। आभूषणों से अलंकृत स्त्री से गृहस्थ की लक्ष्मी बढ़ती है। कहा है-"मांगलिक कार्यों से लक्ष्मी उत्पन्न होती है, चतुराई से बढ़ती है, दक्षता से उसका मूल मजबूत होता है और संयम से वह स्थिर रहती है (अर्थात् प्रतिष्ठा प्राप्त करती है)।" नाटक (सिनेमा) आदि में जाने से अपनी स्त्री को रोकें, क्योंकि वहाँ हल्के पुरुषों की हल्की चेष्टाएँ और हल्के वचन देखने-सुनने से निर्मल मन वाली स्त्री का मन भी, प्रायः वर्षा के जल से आहत दर्पण की तरह बिगड़ता है। रात्रि में स्त्री को राजमार्ग और किसी के घर जाने से रोकें। मुनियों की तरह कुलवती स्त्रियों को भी रात्रि में जहां-तहाँ जाना-माना अत्यन्त हानिकारक है। धर्मसम्बन्धी प्रतिक्रमण आदि प्रवृत्ति के लिए जाना हो तो माता-बहिन तथा सुशील स्त्रियों के समूह में जाने की छूट है। स्त्री को कुशील और पाखण्डी की सोहबत से दूर रखना चाहिए। स्त्री को दान, स्वजन-सम्मान तथा रसोई आदि के कार्यों में जोड़ देना चाहिए । कहा है-बिस्तर उठाना, घर साफ करना, पानी छानना, चूल्हा सुलगाना, बासी हांडो आदि बर्तन धोना, अनाज पीसना, अनाज दलना, गाय दोहना, दही बिलोना, रसोई बनाना, रसोई पसेसना, बर्तन साफ करना, सास, पति, ननद तथा देवर आदि का विनय करना इत्यादि कुलवधू के गृहकृत्य हैं। कुलवधू को उपर्युक्त सभी कार्यों में अवश्य जोड़ना चाहिए। नहीं जोड़ने से वह सदा उदास रहती है। स्त्री उदास हो तो गृह कृत्य बिगड़ते हैं। स्त्री की कोई प्रवृत्ति न हो तो वह चपलस्वभाव के कारण बिगड़ती है। गृहकार्यों में स्त्री को जोड़ने में उसके शील आदि का रक्षण है। प्रशमरति में उमास्वातिजी ने कहा है-"पिशाच तथा कुलवधू के रक्षण के पाख्यान को सुनकर संयमयोगों द्वारा आत्मा को सदैव प्रयत्नशील रखना चाहिए।" स्त्री को स्वयं से दूर न रखें, क्योंकि परस्पर मिलन से ही प्रेम रहता है। कहा भी है-"देखने से, बातचीत करने से, गुणप्रशंसा करने से, अच्छी वस्तु देने से, मन के अनुरूप वर्तन करने से परस्पर प्रेम बढ़ता है।" "नहीं देखने से, ज्यादा देखने से, देखने पर भी नहीं बोलने से, अभिमान करने से और अपमान करने से इन पाँच कारणों से प्रेम घटता है।" पुरुष अत्यन्त प्रवास ही करता रहे और वैमनस्य रखे तो कदाचित् स्त्री अनुचित कार्य भी कर सकती है।
SR No.032039
Book TitleShravak Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasensuri
PublisherMehta Rikhabdas Amichandji
Publication Year2012
Total Pages382
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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