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________________ श्राद्धविधि/२ योग्य व्यक्ति को ही विद्या, राज्य तथा धर्म देना चाहिए, अतः मंगल का कथन करने के बाद अब श्राद्ध (श्रावक) धर्म के योग्य कौन है, इसका कथन करते हैं १. भद्र प्रकृति २. विशेष निपुणमति ३. न्यायमार्गरति और ४. निजवचन में दृढ़ता-इन चार गुणों से युक्त व्यक्ति को सर्वज्ञ भगवन्तों ने श्रावकधर्म के योग्य कहा है। कहा भी है—'रक्त (रागी), दुष्ट (द्वेषी), मूढ़ और पूर्व में व्युद्ग्राहित-ये चार धर्म के लिए अयोग्य हैं और जो मध्यस्थ है, वह धर्म के लिए योग्य है।' (१) रक्त अर्थात् दृष्टिरागी। उदाहरणतः भुवनभानु केवली का जीव पूर्व भव में राजपुत्र विश्वसेन त्रिदण्डी का अत्यन्त भक्त था। सद्गुरु ने अत्यन्त कठिनाई से उसे प्रतिबोध दिया। धर्म में दृढ़ होने पर भी उसने पूर्व परिचित त्रिदण्डी की वाणी को सुनने से दृष्टिरागी बन कर सम्यक्त्व का त्याग कर दिया और अनन्त भवों तक संसार में भटका। अतः जो दृष्टिरागी है, वह धर्म के लिए अयोग्य है। (२) द्वेषी अर्थात् तीव्र द्वेष वाला-भद्रबाहु के भाई वराहमिहिर की भाँति । (३) मूढ़ अर्थात् वचन के भाव को नहीं समझने वाला। ___ यथा-एक ग्रामीण युवक राजसेवा के लिए जाने लगा तब उसकी माता ने उसे विनय करने के लिए समझाया। उसने पूछा-“विनय कैसे करना ?" माँ ने कहा, "नीचे देखकर चलना, राजा की इच्छानुसार चलना और नमस्कार करना" उसे विनय कहते हैं। वह युवक राजसेवा के लिए अपने घर से निकल पड़ा। बीच मार्ग में कुछ शिकारी हरिणों के वध के लिए छिपकर बैठे हुए थे, तभी उस युवक ने जोर से बोलकर जुहार (नमस्कार) किया। उसका अावाज सुनकर हरिण एकदम भाग गये। हरिणों को भागते देख उन शिकारियों ने उस ग्रामीण युवक को पीटा। सत्य बात कहने पर उन शिकारियों ने उसे समझाया कि ऐसे प्रसंग में गुप्त रूप से जाना चाहिए। आगे बढ़ने पर वह युवक धोबियों को देखकर चोर की भाँति धीमी गति से चलने लगा। कुछ समय पूर्व ही इन धोबियों के कपड़ों की चोरी हो गई थी, अतः उस युवक को इस प्रकार धीमी गति से चलते देखकर उनके मन में चोर की भ्रान्ति हुई.."उन्होंने उसको पकड़ कर बाँध दिया । सत्य बात कहने पर उन धोबियों ने कहा-ऐसे प्रसंग पर तो 'धोकर शुद्ध हो' ऐसा कहना चाहिए। वह युवक आगे बढ़ा। थोड़ी दूरी पर कुछ किसान खेत में बीज बो रहे थे। आकाश में बादल छाये हुए थे। उन्हें देखकर उस युवक ने कहा, 'धोकर साफ हो जाओ', अपशकुन की बुद्धि से किसानों ने भी पकड़ कर उसकी पिटाई की। सत्य बात कहने पर उन किसानों ने कहा-'ऐसे प्रसंग पर तो 'बहुत-बहुत हो' ऐसा कहना चाहिए। इस बात को ध्यान में रखकर वह युवक आगे बढ़ा। आगे बढ़ने पर उसने एक मृतक को श्मशान घाट की ओर ले जाते हुए देखा । उस श्मशानयात्रा को देखकर वह ग्रामीण युवक जोर से बोला-'ऐसा प्रसंग बहुत बार हो।' इन शब्दों को
SR No.032039
Book TitleShravak Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasensuri
PublisherMehta Rikhabdas Amichandji
Publication Year2012
Total Pages382
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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