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________________ श्रावक जीवन-दर्शन/१५७ कोई विशेष पर्व और उत्सव आदि हो तो उसे पूरा करके ही जाना चाहिए। कहा है-"उत्सव, भोजन, स्नान, अन्य समस्त मंगल की उपेक्षा करके जन्म और मृत्यु के सूतक की समाप्ति के पूर्व और स्त्री रजस्वला हो तब बाहर (गाँव) नहीं जाना चाहिए।" इस प्रकार शास्त्रानुसारी अन्य भी बातों का ध्यान रखना चाहिए । कहा भी है-"दूध पीकर, स्त्री-सम्भोग करके, स्नान करके, अपनी स्त्री को ताड़ना करके वमन करके, थूक करके और आक्रोशकारी वचनों को सुनकर कभी प्रयाण नहीं करना चाहिए।" "क्षौरकर्म (हजामत) कराकर, अाँख में आँसू लाकर तथा अशुभ-शकुन के समय दूसरे गाँव नहीं जाना चाहिए।" किसी कार्य विशेष के लिए प्रयाण करते समय, जो नाड़ी चलती हो, वह कदम पहले . उठाना चाहिए, इस प्रकार करने से मनुष्य मनोवांछित सिद्धि का भाजन बनता है। "रोगी, वृद्ध, ब्राह्मण, अंध, गाय, पूज्य राजा और गर्भिणी स्त्री तथा मधिक भार से झुके हुए व्यक्ति को पहले मार्ग देकर फिर आगे बढ़ना चाहिए।" "पक्व और अपक्व धान्य, पूजा योग्य मंत्र-मंडल, त्यक्त उबटन, स्नान जल, रक्त तथा शव का उल्लंघन करके नहीं जाना चाहिए।" "थूक, श्लेष्म, विष्ठा, मूत्र, प्रज्वलित अग्नि, सर्प, मनुष्य और शस्त्र का उल्लंघन करके बुद्धिमान पुरुष को आगे नहीं बढ़ना चाहिए।" नदीतट, गाय बाँधने के बाड़े तक, क्षीर वृक्ष, जलाशय, बगीचा तथा कुए आदि तक अपने भाई को पहुंचाने के लिए जाना चाहिए। रात्रि में वक्ष के नीचे विश्राम न करे तथा उत्सव और सूतक की समाप्ति के पूर्व किसी दूर प्रदेश हेतु गमन न करे। बुद्धिमान् पुरुष को (सिर्फ) अकेला नहीं जाना चाहिए, अज्ञात व्यक्तियों के साथ, दास-पुरुषों के साथ भी नहीं जाना चाहिए तथा मध्याह्न में और मध्यरात्रि में भी गमन नहीं करना चाहिए। "क्रूर पुरुष, आरक्षक, चाटुकार, कारीगर तथा कुमित्रों के साथ गोष्ठी नहीं करनी चाहिए और अकाल समय में उनके साथ जाना भी नहीं चाहिए। आत्मकल्याण के इच्छुक को मार्ग में थकावट लगने पर भी भैंसे, गधे और गाय की सवारी नहीं करनी चाहिए।" मार्ग में जाते समय हाथी से हजार हाथ, गाड़े से पाँच हाथ, सींग वाले पशु और घोड़े से दस हाथ दूर ही चलना चाहिए। शबल (भाता) साथ में लिये बिना मार्ग में नहीं चलना चाहिए। दिन में अधिक नहीं सोना चाहिए और बुद्धिमान पुरुषों को अपने साथियों पर भी विश्वास नहीं करना चाहिए । सौ काम आ पड़े तो भी अकेले तो नहीं जाना चाहिए। देखो, एक केकड़े जैसे प्राणी ने भी ब्राह्मण को बचा लिया। किसी भी व्यक्ति के घर अकेले नहीं जाना चाहिए। किसी के घर पिछले रास्ते से नहीं जाना चाहिए। बुद्धिमान पुरुष को जीर्ण नाव में नहीं बैठना चाहिए और नदी में अकेले प्रवेश नहीं करना चाहिए। अपने सगे भाई के साथ भी मार्ग पर नहीं जाना चाहिए। जल और स्थल के विकट प्रदेश, विकट जंगल और गहरे जल को बिना उपाय के पार नहीं करना चाहिए।
SR No.032039
Book TitleShravak Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasensuri
PublisherMehta Rikhabdas Amichandji
Publication Year2012
Total Pages382
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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