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________________ - श्रावक जीवन-दर्शन/१३१ व्यापार आदि करने वाले हाथ से काम करने वाले हैं। दूत आदि का काम करने वाले पैर से काम करने वाले हैं। भार-वहन करने वाले मस्तक से काम करने वाले हैं। (6) सेवा के चार भेद हैं - (1) राजा की, (2) अमलदार की, (3) सेठ की और (4) अन्य लोगों की। रात-दिन पराधीनता होने के कारण राजा आदि की सेवा करना अत्यन्त कठिन कार्य है। कहा भी है. "सेवक यदि मौन रहता है तो मूक कहलाता है, यदि ज्यादा बोलता है तो बकवासी कहलाता है, यदि अत्यन्त पास में बैठता है तो धृष्ट कहलाता है और दूर बैठे तो बुद्धिहीन कहलाता है। क्षमा रखता है तो कमजोर कहलाता है और सहन न करे तो कुलहीन कहलाता है। सचमुच सेवाधर्म परम गहन है, वह तो योगियों के लिए भी अगम्य है।" "अपनी उन्नति के लिए मस्तक झुकाता है, जीवन के लिए प्राणों का त्याग करता है और सुखी बनने के लिए दुःखी होता है, सचमुचं सेवक को छोड़कर दूसरा कौन मूर्ख है ?" __"सेवा की तुलना श्वानवृत्ति से करने वालों ने सोच-समझकर कहा हो, ऐसा नहीं लगता है, क्योंकि कुत्ता तो अपनी पूंछ हिलाकर ही चापलूसी करता है, जबकि सेवक को तो बारम्बार मस्तक हिलाना पड़ता है।" ... सेवक का यह स्वरूप और सेवक की यह स्थिति होने पर भी आजीविका का अन्य कोई उपाय न हो तो सेवा से भी निर्वाह किया जाता है। कहा भी है "धनवान व्यापार से, अल्पधनी खेती से अपना निर्वाह करता है परन्तु जिसके कोई व्यवसाय (उपाय) न हो वह सेवावृत्ति से भी निर्वाह करता है।" * योग्य सेव्य कौन ? - , जो समझदारी और कृतज्ञता आदि गुणों से युक्त है,. वही व्यक्ति सेवा के लिए योग्य है। कहा है “कान का कच्चा न हो, शूरवीर हो, कृतज्ञ हो, सात्त्विक हो, गुणवान हो, दाता हो तथा गुणरागी हो ऐसा समृद्ध स्वामी किसी पुण्य से ही प्राप्त होता है।" _ "जो क्रूर हो, व्यसनी हो, लोभी हो, नीच हो, सदा रोगी हो, मूर्ख हो, अन्यायी हो-ऐसे व्यक्ति को कभी अपना स्वामी नहीं बनाना चाहिए।" "अविवेकी राजा के पास जो समृद्ध बनने की इच्छा करता है, सचमुच वह मिट्टी के घोड़े पर सौ योजन जाने की इच्छा करता है।" कामन्दकीय नीतिसार में कहा है-"वृद्धानुसारी राजा सत्पुरुषों को मान्य होता है और कदाचित् दुष्ट लोग उसे प्रकार्य की प्रेरणा करे तो भी वह अकार्य नहीं करता है।"
SR No.032039
Book TitleShravak Jivan Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasensuri
PublisherMehta Rikhabdas Amichandji
Publication Year2012
Total Pages382
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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