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________________ अभिनव प्राकृत-व्याकरण तणहं < तृणानाम्-ऋकार का अ होकर तण शब्द बना है, इसमें षष्ठी विभक्ति के बहुवचन में हैं प्रत्यय जोड़ दिया गया है। ( ३९ ) अपभ्रंश में इकारान्त और उकारान्त शब्दों से पर में आनेवाले आम् प्रत्यय-षष्ठी के बहुवचन में हुं और हँ दोनों आदेश होते हैं । यथा सउणिहं < शकुनीनाम्-पष्टी विभक्ति के बहुवचन में हैं प्रत्यय होता है। सप्तमी विभक्ति बहुवचन में भी हैं प्रत्यय होता है । यथादुहुँ <द्वयोः ( ३६ ) अपभ्रंश में इकारान्त और उकारान्त शब्दों से पञ्चमी के एकवचन, पञ्चमी बहुवचन और सप्तमी के एकवचन में क्रमश: हे, हुं और हि आदेश होते हैं। यथा गिरिहे< गिरेः गिरि + उ = गिरि + हे = गिरिहे। तरहे<तरोः - तरु + उ = तरु + हे = तरुहे।। तरहुं < तरुभ्यः -तरु + भ्यस् = तरु + हुं = तरुहुँ। कलिहिद कलौ-कलि + ङि = कलि + हि = कलिहि । ( ३७ ) अपभ्रंश में इकारान्त और उकारान्त शब्दों से तृतीया विभक्ति के एकवचन में एं, ण और अनुस्वार आदेश होते हैं । यथा अग्गिएं अग्निना-अग्गि + ए = अग्गिएं। अग्गिणं अग्निना-अग्गि + णं = अग्गिणं । अग्गि< अग्निना-अग्गि + म् = अग्गि। ( ३८ ) अपभ्रंश में सु, अम् , जस् और शस् विभक्तियों का लोप हो जाता है । यथा एइ ति घोडा< एते ते घोटका:-जस का लोप । वालइ वग्गरवालयति वल्गाम्-अम् का लोप । अपभ्रंश में षष्ठी विभक्ति का प्रायः लुक् हो जाता है । यथागय कुम्भई दारन्तु < गजानां कुम्भान् दारयन्तम् । ( ३९ ) अपभ्रंश में यदि किसी शब्द के सम्बोधन में जस् विभक्ति आयी हो तो उसके स्थान में हो आदेश होता है । यथा तरुणहो, तरुणिहोर हे तरुणाः, हे तरुण्यः -जस् के स्थान में हो आदेश हुआ है। १. हुं चेदुद्भ्याम् ८।४।३४०। ...२. उसिभ्यस्-डीनां हे-हं-हयः ८।४।३४१ । ३. एं चेदुतः ८।४।३४३ । ४. स्यम्जसशसां लुक् ८।४।३४४ । ५. षष्ठ्याः ८।४।३४५ । ------- ६. प्रामन्त्र्ये जसो होः ८।४।३४६ ।
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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