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________________ अभिनव प्राकृत व्याकरण ४६१ अपभ्रंश में वर्णविपर्यय ( Metathesis ) के भी उदाहरण पाये जाते हैं । यथा--- हर गृह — वर्णविपर्यय । रद्दस हर्ष < .. वर्णविकार में समीकरण ( Assamilation ) और विषयी ( Disassamilation ) के भी उदाहरण मिलते हैं। यथा जुप्त युक्त — य के स्थान पर ज और त के संयोग से क ध्वनि भीत में परिवर्तित है । रक्त रक्तत के संयोग से क् ध्वनि तू में परिर्तित है । सद्द शब्द- द के संयोग से बू ध्वनिद में परिवर्तित है । अग्ग अग्निग के संयोग से न ध्वनि ग में परिवर्तित । सत्ति पत्नी को व और त के संयोग से न ध्वनि त में परिवर्तित | - वर्णलोप में भी आदि, मध्य और अन्त्य वर्ण का लोप होता है । वि अपि आदि स्वर का लोप ( Aphaerasis ) रण्ण अरण्य- "" पोष्फल पूगफल - मध्य वर्ग का लोप ( Syncope ) भविसत्तकहा << भविष्यदत्तकथा - यहाँ अक्षर लोप ( Haplology ) है | शब्दरूपावलि यथा ވ, ( २६ ) अपभ्रंश में प्रथमा और द्वितीया विभक्ति के एकवचन में अकारान्त शब्दों के अन्तिम अ को उ होता है । यथा- दहमुहु 4 दसमुखः - स को ह और ख को ह; प्रथमा एकवचन में उ विभक्तिचिह । तोसिअ - संकरु तोषित - शंकर : - प्रथमा एकवचन में उ विभक्तिचिह्न । चउमुहु चतुर्मुखम् - द्वितीया के एकवचन में उ विभक्तिचिह्न | छमुहु षण्मुखम् - षट् के स्थान पर छ और द्वितीया के एकवचन में उ विभक्तिचिह्न | १. स्यमोरस्योत् ८|४|३३१; जिणु जिनः प्रथमा के एकवचन में उ विभक्तिचिह्न । (२७) अपभ्रंश में पुंल्लिङ्ग में वर्तमान अकारान्त शब्दों के प्रथमा के एकवचन में विकल्प से अन्तिम अ के स्थान में ओ होता है । यथा जोय के स्थान पर ज और विभक्ति प्रत्यय ओ । सोसः विभक्ति प्रत्यय ओ जोड़ा गया है । २. सौ पुंस्योद्वा८।४।३३२ ॥
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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