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________________ ३६० अभिनव प्राकृत-व्याकरण -- anana स स ६ ३ ३० एअदएतद् एकवचन बहुवचन एस, एसो एवं एदे, एदा एदेश, एदेणं, एदिगा एदेहि, एदेहि एदस्स एदेसि, एदाण, एदाणं एदादु, एदादो एअत्तो, एआओ, एआहितो, एआसंतो एदस्स एदेसि, एदाण, एदागं एत्थ, अयम्मि, ईअम्मि एएस, एएसु एअम्मि, एअंस्सि क्रियारूप । ३६ ) शौरसेनी में ति के स्थान पर दि और ते के स्थान पर दे, दि आदेश होते हैं। (३६) शौरसेनी में भविष्यत् अर्थ में विहित प्रत्यय के पर में रहने पर स्सि होता है । भविस्सिदि, करिस्सिदि, गच्छिस्सिदि, आदि । (३७) शौरसेनी में भूधातु के स्थान पर भो आदेश होता है । यथा-भोवि । (३८) शौरसेनी में तिङ के पर में रहने पर दा धातु के स्थान में दे आदेश होता है और भविष्यत् में दइस्स होता है। (३९) शौरसेनी में कृज धातु के स्थान में कर आदेश होता है। यथा करेमि । (४०) शौरसेनी में तिङ के पर में रहने पर स्था धातु के स्थान में चिट्ठ आदेश होता है। ( ४१ ) शौरसेनी में स्मृ, दृश और अस धातुओं के स्थान में क्रमशः सुमर, पेक्ख और अच्छ आदेश होते हैं। ( ४२ ) तिप के साथ अस् धातु के सकार के स्थान में स्थि आदेश होता है। (४३ ) भविष्यत्काल में मिप सहित अस के स्थान में विकल्प से सं आदेश होता है । विकल्पाभाव में धातु के स्वर का दीर्घ भी होता है । स्सं, आस्सं आदि । ( ४४ ) बहुवचन में तकार का धकार भी होता है । (४६ ) उत्तम पुरुष में म्ह होता है तथा मिप के स्थान पर स्सम् होता है। वर्तमान में शौरसेनी के धातु प्रत्यय एकवचन बहुवचन प्रथम पुरुष (Thrid Person) दि. दे न्ति, न्ते, इरे मध्यम पुरुष (Second Person) सि, से इत्था, ध, ह उत्तम पुरुष (First Person) मि मो, मु, म
SR No.032038
Book TitleAbhinav Prakrit Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorN C Shastri
PublisherTara Publications
Publication Year1963
Total Pages566
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size28 MB
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